शनिवार, 16 अप्रैल 2022

अनंग की दो ग़ज़लें

"दिन बदलेगा "


कर्म करो तुम,केवल अपना।

निश्चित  होगा , पूरा  सपना।।

कोई कुछ भी कहे ,मौन रह। 

हो जाएगा,तब कुछ कहना।। 

करने  वाले तो , व्यंग करेंगे।

बन जाना है ,तुमको गहना।।

बाधाएं   तो ,   रोकेंगी  पर।

नदियों जैसे , केवल बहना।।

तुम मजबूत , दीवारों  जैसे।

तुमको कभी,नहीं है ढहना।।

जब तक बाजी,जीत न जाओ। 

करते रहो सदा,व्यूह  रचना।।

अडिग रहो,उत्तम विचार हो। 

कभी बुराई में , मत फंसना।। 

आज कष्ट सह लो,तुम लेकिन।

दिन बदलेगा ,कल मत सहना।।

बड़े  परिश्रम , से मिलता है। 

अपना बनके ,दिल में रहना।।

कर्म करो तुम केवल अपना।।..."


अनंग "


*"देना सीखो"*


पास  बैठो  जरा , कुछ  सुनाया करो।

बेवजह भी कभी, आया जाया करो।।


यह  जरूरीब नहीं कि, कोई काम हो।

बिना मतलब के भी तो, बुलाया करो।।


तुम खुली छत पे बैठो तो,अच्छा लगे।

चांद  हो ,  रोशनी  में   नहाया   करो।।


कोई  मासूम  दिख  जाए , रोते  हुए।

पोछकर उसके आंसु,खिलाया करो।।


ज्ञान  के  दीप , बुझने  न  देना  कभी।

खुद पढ़ो, जिनको चहिए,पढ़ाया करो।।


पीढियों  में विचारों का, अन्तर बहुत।

इन बुजुर्गों के संग भी, बिताया करो।।


अपने खाने में रोटी, जरा कम करो।

चंद रोटी झोपड़ियों में, लाया करो।।


प्यार से बढ़ के, दुनिया में कुछ भी नहीं।

खुद  बहो , दूसरों  को  बहाया  करो।।


मांगने से तो इज्जत है,मिलती नहीं।

देना  सीखो , सदा मुफ्त पाया करो।।...

*"अनंग"*

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