*ज़िंदगानी...*
🍁 🍁
~ *प्रेम रंजन अनिमेष*
💧
ये जो पानी है
ज़िंदगानी है
हैं निशां इतने
क्या निशानी है
रंग धरती का
सुर भी धा नी है
आँखों में सपना
आसमानी है
कोरा कागद तन
मन ही मानी है
अब तो हर लब पर
बेज़ुबानी है
मुझमें मिट्टी की
बोली बानी है
दिन को महकाती
रातरानी है
प्यार तो ख़ुशबू
जाफ़रानी है
और जवानी क्या
बस रवानी है
पूछे ख़ुद मछली
कितना पानी है
दौड़ती दिल पर
राजधानी है
तंत्र की जन पर
हुक्मरानी है
देख ले हालत
क्या बतानी है
क्या कहीं कोई
दुख का सानी है
झाँस देगी ही
कच्ची घानी है
बरसे बच्ची ज्यों
दादी नानी है
एक ख़ुद को छोड़
सबकी मानी है
तुझमें अपनी ही
ख़ाक छानी है
फूँका सब अब बस
राख उठानी है
तोड़ कर मूरत
फिर बनानी है
इश्क़ का ये रोग
ख़ानदानी है
जीते जी जी लें
जी में ठानी है
उसको शह दे ख़ुद
मात खानी है
अब कफ़न में भी
खींचातानी है
फ़ानी है दुनिया
आनी जानी है
साथ में सबके
कुछ कहानी है
जान की क्यों फ़िक्र
ये तो जानी है
अनकही सुन ली
अब सुनानी है
शेर हर 'अनिमेष'
इक कहानी है
💔
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