बुधवार, 6 अप्रैल 2022

तब रोक ना पाया मैं आंसू / हरिवंश रॉय बच्चन

 कविवर श्री हरिवंश राय "बच्चन" जी की यह कविता आज अचानक बहुत याद आ रही है ...


तब  रोक  न  पाया  मैं  आँसू !


जिसके  पीछे  पागल  होकर

मैं  दौडा  अपने  जीवन  भर,

जब मृगजल में परिवर्तित हो 

मुझ  पर  मेरा  अरमान  हंसा !

तब  रोक  न  पाया  मैं  आंसू !


जिस में अपने  प्राणों को भर

कर  देना  चाहा  अजर-अमर,

जब विस्मृति के पीछे छिपकर 

मुझ  पर  वह  मेरा  गान हंसा !

तब  रोक  न  पाया  मैं  आंसू !


मेरे    पूजन    आराधन    को

मेरे    सम्पूर्ण    समर्पण   को,

जब  मेरी  दुर्बलता  कह  कर 

मेरा    पूजित   पाषाण   हंसा !

तब  रोक  न   पाया  मैं  आंसू !


साभार : स्वर्गीय श्री हरिवंश राय बच्चन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...