शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

आलोक तोमर का शांत हो जाना / हरीश पाठक

 हर साल 20 मार्च आती है,उसे आना ही है और उसके उगते और डूबते ही एक भय मेरे चारों ओर पसर जाता है।इस भय में शोकगीत का वह मुखड़ा दर्ज है जो तुम्हारी यादों का जलसा घर है।

      उस दिन भी 20 मार्च थी।साल था 2011 ।समय था 11 बजकर,10 मिनट जब दिल्ली के बत्रा अस्पताल में टूटी थी तुम्हारी साँस मेरे अजीज,मेरे दुख,सुख के साथी,साक्षी प्रिय आलोक तोमर।उस दिन भी आज की ही तरह इतवार था।

     मौसम में होली गीत थे पर मन में क्रंदन था।तुम्हारा, मेरा 33 साल का साथ एक झटके में टूटा था।तब मैं पटना में 'राष्ट्रीय सहारा' का स्थानीय संपादक था और होली मनाने मुम्बई आया था।अटैची दरवाजे पर ही रखी थी कि राहुल  देव के फोन ने यह बुरी खबर दी थी।

   तत्काल दिल्ली पहुँचा था और सोमवार की सुबह 10 बजे लोदी रोड के श्मसान में तुम हम सबके देखते देखते धुआँ धुआँ हो गये थे।

        आज तुम्हारे बगैर 11 साल बीत गये।

        अब तक रुलाता है वह पल।रुलाता ही रहेगा।पिछले 11सालों से कोई दिन ऐसा नहीं बीता जब तुम्हारी याद मन को व्यथित और आंखों को नम न करती हो।

        आज (20 मार्च) को सुबह से ही मन उदास है।आज तुम्हारी पुण्यतिथि है यानी वह दिन जिसे किसी ने कभी नहीं चाहा था पर स्वीकारना पड़ा-भारी

 मन से।

      क्या कर सकते थे?क्या कर सकते हैं?

      नमन मेरे हमदम,मेरे दोस्त।

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