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मित्रो, 2020 और 2021 के पेंडेमिक काल में घर में क़ैद होकर अवसाद, अकेलापन, बीमारी, कोरोना की मार को झेलते बिस्तर पर लेटे लेटे 2000 के बाद आई पंजाबी की बेहतरीन कहानियों को पढ़ने का अवसर मिला। उनमें से करीब 12 कहानियों का अशक्त शरीर के बावजूद जैसे तैसे अनुवाद किया। उनका रिजल्ट अब 2022 में सामने आ रहा है। समकालीन भारतीय साहित्य के जनवरी-फरवरी 2022 अंक में गुरदेव रूपाणा की कहानी 'भारत रत्न', और भोपाल से निकलने वाली बिल्कुल नई पत्रिका 'वनमाली' के मार्च 2022 अंक में जिन्दर की कहानी 'जोगी' का छपना कहीं भीतर संतोष और खुशी प्रदान कर रहा है। 'जोगी' कहानी हिंदी के एक बड़ी कथा पत्रिका के पास डेढ़ साल पड़ी रही। विवश हो वहां से विड्रॉ करनी पड़ी। शायद उसके भाग्य में 'वनमाली' जैसी शानदार पत्रिका में ही छपना लिखा था। मार्च 2022 में 'दैनिक ट्रिब्यून' में ख़ालिद फरहाद धालीवाल की पाकिस्तानी पंजाबी कहानी 'मालकिन', 'विभोम स्वर' के अप्रैल-जून 2022 अंक में कुलबीर बड़ेसरों की कहानी 'माँ री!' प्रकाशित हुई हैं। पेंडेमिक काल में अनुवाद की गईं कुछ अन्य कहानियां कुछ पत्रिकाओं में स्वीकृत हैं जैसे 'हंस', ''कथादेश', 'कथाक्रम', 'वर्तमान साहित्य', 'परिकथा' और 'समावर्तन'।
'वनमाली' में प्रकाशित कहानी 'जोगी' बड़ी कहानी है, इसलिये इसे यहां पूरा नहीं दे पा रहा हूँ।
'वनमाली' एक नई शानदार पत्रिका है। प्रकाशित रचनाओं का स्तर ऊंचा है और सबसे बड़ी बात कि इसे छापा बहुत शानदार गया है।
इस अंक में धीरेंद्र अस्थाना की लम्बी कहानी 'हंस अकेला' छपते ही चर्चा का विषय बन गयी है। यूँ तो इस पत्रिका की सभी रचनाएं पढ़नी हैं, पर सबसे पहले 'हंस अकेला' ही पढ़ने जा रहा हूँ। धीरेंद्र अस्थाना 80 के दशक से मेरे प्रिय कथाकार रहे हैं और वह आज भी लेखन में उसी तरह ऊर्जावान हैं और सृजनशील हैं।
'वनमाली' की समस्त संपादकीय टीम को मेरी बधाई और शुभकामनाएं।
-सुभाष नीरव
30 मार्च 2022
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