गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

प्रख्यात उपन्यासकार शुभा वर्मा का निधन/ हरीश पाठक

 

'फ्रीलांसर' की यशस्वी लेखिका ने आध्यात्म में 

काटे अंतिम दिन

कल सुनीता जी और वरिष्ठ चित्रकार तथा बेहतरीन फोटोग्राफर स्वर्गीय तूलिकी जी के सुपुत्र अनिल भैया ने सूचना दी कि शुभा वर्मा जी नहीं रही। मेरी आत्मनिर्भरता और लिखने-पढ़ने में जिन दो व्यक्तियों का सबसे अधिक योगदान है वे थे- मेरे बड़े भाई स्वर्गीय डा. रामस्वरूप शर्मा और शुभा वर्मा। मेरी नौकरी के लिए शुभा जी ने बहुत प्रयास किए। नौकरी मिल  गई है, इसकी सूचना देने भी वह घर आईं। उनका पूरा जीवन बेहद कठिनाइयों से भरा रहा। अठारह साल की थीं कि दोगुने उम्र के आदमी से विवाह किया जा रहा था। जब कुछ नहीं सूझा तो घर छोड़कर निकल पड़ीं। यह उन्नीस सौ पचपन  की बात है। रेल में रमेश वर्मा जी से मुलाकात हुई। पूरी बात सुनकर उन्हें बहुत सहानुभूति हुई। वह अपने घर ले  गए और विवाह कर लिया । इलाहाबाद की शोभा शर्मा, शुभा वर्मा बन गईं। लेकिन माता-पिता ने जीवन भर माफ नहीं किया। कोई सम्पर्क नहीं रखा। पिता तो फिर भी मिलने आए, मां के यहां कोई माफी नहीं मिली। लेकिन दुर्भाग्य का अंत कहां! दो बेटियों की मां थीं, तीस साल की थीं कि पति रमेश जी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। वह भी पत्रकार थे। दिनमान में काम करते थे। न नौकरी न अपना घर न माता-पिता का सहारा ही , खुद को और दो बच्चियों को पालने की जिम्मेदारी भी। बहुत कुछ किया। फ्री लांसिग,नकली नाम से उपन्यास लेखन। बड़े पत्रकारिता संस्थान में नौकरी पति के मित्र ने दी। सोचा कि यहां कुछ राहत होगी, मगर यह आदमी तो बुद्धिजीवी और प्रगतिशीलता के वेश में भेड़िया निकला। अकेली स्त्री उसे सहज शिकार लगी। बल्कि दफ्तर में काम करने वाली हर लड़की को यह अपना माल कहकर सम्बोधित करता था। नाम लिखना नहीं चाहती क्योंकि यह आदमी अब दुनिया में नहीं है।प्रतिवाद करने नहीं आ सकता। लेकिन वह शुभा जी ही क्या, जो झुक जाएं। शुभा  जी ने फ्रीलांसर नाम से उपन्यास लिखा और इस आदमी के काले कारनामों को बताया। बस उनकी नौकरी पर बन आई। लेकिन कुछ होता, इससे पहले ही इसी आदमी को कान पकड़कर बाहर निकाल दिया गया। शुभा जी ने बहुत से उपन्यास लिखे, लेकिन ख्याति उन्हें फ्री ल़ांसर से ही मिली। लगभग बीस साल पहले वह आध्यात्म की तरफ मुड़ीं और वापस नहीं लौटीं। सबसे उन्होंने सम्पर्क तोड़ लिए। बीस साल से मैं भी उनसे नहीं मिली। कभी-कभार फोन पर उनसे बातें होती थीं। उनकी स्मृति को नमन।


प्रख्यात कथाकार,संपादक Kshama Sharma की वॉल से साभार।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत दुःखद। शुभा से मिला हूँ और रमेश वर्मा के मित्र को तो जानता ही था।वर्मा को अस्पताल में ICU में देखने उस मित्र और राजेन्द्र अवस्थी के साथ उन दिनों दिल्ली आया मैं भी था। वर्मा का वह "मित्र" शुभा के भोलेपन का फ़ायदा उठाकर लखनऊ में एक पहाड़ी मित्र से जो अश्लील बात कह रहा था, वह उसने जब मुझे बताई तभी से मुझे उससे नफ़रत हो गई,जबकि पूर्व में वह मेरा अच्छा मित्र था

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