शनिवार, 16 अप्रैल 2022

दो ग़ज़लें / प्रेम रंजन अनिमेष*

 *गली तो याद है...*


                        🍁 ग़ज़ल 🍁

                                   ~ *प्रेम रंजन अनिमेष*

                               🈴

गली  तो  याद है  लेकिन  मकां  मैं  भूलूँगा

तुम्हारा  घर  वहीं  निकले  जहाँ  मैं  भूलूँगा


ख़ामोशियों  की  ज़ुबानें  कई  पता  तुमको

तुम्हारे  साथ  में  अपनी  ज़ुबां   मैं  भूलूँगा


हैं जितनी  सूनी निगाहें ये  उतनी ही  गहरी

जो  इनमें  डूब  गया   दो  जहां  मैं  भूलूँगा


बहुत  बड़ी  है  ये  दुनिया  मगर  है अंदाज़ा

ख़ुद अपनी ख़लवतों के दरमियां मैं भूलूँगा


ख़ुशी  न  पूछो   अगर  प्यार  पूछ  ले  कोई

कि दिल के शोर में  कहना भी हाँ मैं भूलूँगा


ये   ज़िंदगी   तो    मुहब्बत   बग़ैर    बेमानी

किसी के जिस्म में कब अपनी जां मैं भूलूँगा


चमन को भूल गया और वतन भी भूल गया

कहा  तो  था  न  कभी आशियां  मैं  भूलूँगा


मेरी   रगों  में   तेरा  दूध   दौड़ता   हर  पल

भला कभी तुझे  किस तरह  माँ  मैं  भूलूँगा


क़फ़स में आज है  दिल को क़रार सा कैसा

उड़ान  भूला  हूँ   अब  आसमां   मैं  भूलूँगा


वो प्यार  है सही  सब कुछ  नहीं वही  प्यारे

न  एक  गुल के  लिए  गुलसितां  मैं भूलूँगा


तुम्हारे  होंठ   ये   'अनिमेष'   काम   आयेंगे

जो  कहते  कहते   कहीं  दास्तां  मैं  भूलूँगा

                               🏵️

                                ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*

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