मंगलवार, 20 सितंबर 2022

हसीन चाँद पे इक घर दिखाई देता है। / आराधना प्रसाद

 श्रीमती आराधना प्रसाद पटना की उन थोड़े-से साहित्यकारों में शामिल हैं जिन्हें हिन्दी-उर्दू, दोनों भाषाओं में समान रूप से पढ़ा और सुना जाता है और जिनकी भाषा इन दोनों भाषाओं के भेद को मिटाती है :


अजीब शाम का मंजर दिखाई देता है

जब आफ़ताब ज़मीं पर दिखाई देता है।

मुझे तो नील गगन के विराट आँगन में 

हसीन चाँद पे इक घर दिखाई देता है।

जिसे तू ढूँढ़ता रहता है इस ज़माने मेंU

मुझे वो खुद ही के अंदर दिखाई देता है।


श्रीमती प्रसाद मेरे कार्यालय आयीं और अपनी सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'चाक पर घूमती रही मिट्टी' भेंट की।आराधना जी आपका बहुत बहुत आभार।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चिड़िया का घोंसला  सर्दियाँ आने को थीं और चिंकी चिड़िया का घोंसला पुराना हो चुका था। उसने सोचा चलो एक नया घोंसला बनाते हैं ताकि ठण्ड के दिनों ...