भाषा बोलियों की निर्मम हत्या कर देती है ।
बचपन मे मेरी बोली के हजारों शब्द बुजुर्गों ने दिये थे जिन्हे मैं आज भूल चुका हूँ । भूलने का कारण हिंदी भाषा का बोली मे प्रयोग करना है । बस एक शब्द जेहन मे याद आता है कि बचपन में रेशेदार सब्जी को सब लोग तिवण कहा करते थे । आज मेरे गांव और आसपास एक भी आदमी मुझे तिवण कहता नही मिला है ।
आप भी बताइये आपकी बोली के कितने शब्द मार दिये गये है ?
बाकि यहां कहावत है.......कोस कोस पर पानी बदले चार कोस पर वाणी !
भारत विविध भाषा और बोलियों का देश है । मात्र हिंदी को ही भारतीयता प्रतिक बना देना अन्य भाषाओं के साथ अन्याय है । आप अपेक्षा रखते हो कि सब हिंदी बोले क्योंकि आप हिंदी बोलते हो ? यह गलत विचार है । वह जमाना गया जब चंद प्रभावशाली लोग हिंदी का गुणगान सिर्फ इसलिए करते थे ताकि अपने बच्चों को फर्राटेदार अंग्रेज़ी सिखा कर देश मे प्रभावशाली स्थित मे ला सके ।
आप तमिल, तेलगु, कन्नड़, मराठी, असमिया को क्या देश की भाषा नही मानते ? बात अगर परस्पर संवाद की है तो क्या आप इन भाषाओं को सीखना नही चाहिए ?
क्या आप सिर्फ सिखाना जानते है ? आप सीखना नही जानते ?
देश की मिट्टी से उपजी हर बोली, भाषा हमारी है इनमे कोई भी श्रेष्ठ और हीन नही है । जब आप यह मानकर चलेगे तो भाषाई विवाद स्वंय खत्म हो जायेगें ।
वरना बात तुम हिंदी की करते हो मगर बिहार,छत्तीसगढ़, झारखण्ड, या दक्षिण भारत का मजदूर वर्ग एनसीआर, हरियाणा, राजस्थान मे अगर आता है तो स्थानीय लोग उसकी भाषा बोली को लेकर तरह तरह के तंज कसते है उन्हे हेय दृष्टी से देखती है ।
तब तुम हिंदी और भारतीय भाषाओं का अपमान नही करते ?
#हरेन्द्र_प्रजापति
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