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०आज गीतकार रामावतार त्यागी की पुण्यतिथि है
@ अरविंद सिंह
''एक हसरत थी कि आँचल का मुझे प्यार मिले
मैने मंज़िल को तलाशा मुझे बाज़ार मिले
ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या है... !''
'जिंदगी और तूफान'(1975) फिल्म के लिए जब गायक मुकेश ने गीतकार रामावतार त्यागी की इस अमर रचना को स्वर दिया तो मानों जिंदगी और उसके मर्मस्पर्शी दर्शन को लेकर रामावतार त्यागी के अतीत के पन्ने खुलने लगें हों. बचपन की हसरतों को लेकर जो तड़प और दर्द उन्होंने सहन किया, मानों इन शब्दों में वे मुखरित होने लगते हैं. जीवन के यथार्थ और उसके गुढ़ दर्शन को बताने लगते हैं. और यह अनुभूति उनकी उधार की नहीं, बल्कि खुद की भोगी और जी गयी लगती है. विरह और वेदना की ज़मीन पर तपायी और खपायी गयी होती है.
किसी रचनाकार की, अपने भोगे और जीये गये यथार्थ व उसकी पीड़ा की अनुभूति का दर्शन उसकी रचनाधर्मिता में देखने को मिलती है. आदमी अपने परिस्थितियों का उत्पाद होता है. और यही परिस्थितियां ही उसे गढ़ती और बनातीं हैं.
जब रामावतार त्यागी के भीतर का रचनाकार यह कहता है कि-
''मुझको पैदा किया संसार में दो लाशों ने और बरबाद किया क़ौम के अय्याशों ने/ तेरे दामन में बता मौत से ज्य़ादा क्या.."
तो समाज और उसके रिश्ते-नातों और कौ़मी फिरकापरस्ती को लेकर एक आक्रोश जनित भाव दिखाई देते हैं.दूसरे ही पल वहीं आत्मविश्वास से लबरेज एक अदम्य साहस का गीतकार भी दिखता है जो जीवन की अंतिम यात्रा मौत को भी चुनौती देता दिखाई देता है. आशा- और नैराश्य के विपरीत भावों और अनुभूतियों का यह कवि, गीतकार जब मुरादाबाद के छोटे से हिस्से संभल (जो अब जनपद है)के एक छोटे से गाँव से निकल कर संघर्ष पथ पर चलता है तो कदम-दर कदम कठोर चुनौतियों से सामना होता है. और इन्हीं से दो-दो हाथ करते हुए देश की राजधानी दिल्ली पहुँच जाता है. दिल्ली विश्वविद्यालय से परास्नातक करते हुए, जीवन की यथार्थ सच्चाईयां इस युवा रामावतार को गढ़ती और मांजती हैं. उसके भीतर का कलमकार उसे वहां पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करता है जहाँ प्रकृति ने निर्धारण किया था. टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए क्राइम रिपोर्टर के रूप में सेवाएं देने लगते हैं.यह अपराध और इसके मनोविज्ञान को समझने और महसूसने का अवसर देते हैं.
उनकी भाषा और शैली की विशिष्टता उन्हें एक नई पहचान देती है. और हिंदी के कलमकार की यह पहचान उन्हें देश की सबसे ताकतवर महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीब पहुंचा देती है. परिणाम यह होता है कि स्वयं इंदिरा गांधी अपने दोनों बच्चों राजीव गांधी और संजय गांधी को हिंदी सिखाने के लिए रामावतार त्यागी से निवेदन करती हैं. और वे राजीव और संजय को हिंदी में पारंगत करते हैं.15 से अधिक किताबें लिखने वाले रामावतार त्यागी के रचना संसार में कविता और गीत के साथ उपन्यास जैसी विधाओं में विपुल साहित्य समाया हुआ है. और यह साहित्य निरा कल्पनाओं पर आधारित भर नहीं है बल्कि व्यवहारिक धरातल पर अनुभूति के रस से सिक्त है. हिंदी गीत को नई ऊंचाई देने वाले इस कवि की सराहना रामधारी सिंह दिनकर से लगायत अनेक तत्कालीन रचनाकारों ने मुक्तकंठ से किया था.
'नया खून, 'मैं दिल्ली हूँ', 'आठवां स्वर', 'गीत सप्तक-इक्कीस गीत', 'गुलाब और बबूल वन', 'राष्ट्रीय एकता की कहानी' ,जैसी काव्य संकलन के साथ 'समाधान', 'चरित्रहीन के पत्र', 'दिल्ली जो एक शहर था', 'राम झरोखा' जैसी गद्य रचनाओं ने उनके भाव और विचार को बहुकोणीय तरीके से समाज के मानस पर अमिट छाप छोडी. दर्द का यह गीतकार जब जज़्बात के संग दौलत को खेलते हुए देखता है तो मुखर विरोध कर बैठता है. उसका जनपक्षीय चरित्र उसे विसंगतियों और रूढियों से लड़ने के लिए कागज के कुरूक्षेत्र में उतार देता है. और एक ऐसे रामावतार त्यागी को गढ़ने लगता है जो युग पीड़ा और शोषण का स्थायी विपक्ष और ज़बान बन जाता है. क्योंकि उनको इस बात का अदम्य विश्वास था कि आदमी चाहे तो तकदीर बदल सकता है, पूरी दुनिया की वो तस्वीर बदल सकता है.बस आदमी सोच ले कि उसका इरादा क्या है....!
(लेखक शार्प रिपोर्टर का संपादक है)
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