सलाम ए जिंदगी💐(टीचर्स डे)
तो जिंदगी आप ही हमारी जनाब,सर,टीचर है।कितना कुछ सिखाया तुमने मुझे,बहुत बुद्धि तो हासिल नही थी, किन्तु राहो में पत्थर रख रख कर,ठोंकरे मार मार कर,बहुत कुछ सीखा दिया।लहू पोंछना घावों को धोना,और फिर उठ खड़े होना ,गिरने तो दिया ही नही तुमने मुझे।लोहा बना दिया मुझे तुमने ए जिंदगी।
सुबह के वक्त से मेरा जुड़ाव एक स्फूर्ति है।जो मुझे दर्शन,एहसास,कुदरत की मौजूदगी सबका पाठ पढ़ा जाती।सुबह मुझे बताती है ,की मैं अधूरी हूँ, कल फिर आना होगा मुझे कुदरत की गोद मे।
दोपहर जिंदगी भर से मेरे सर से होकर गुजरती है,कोई दोपहर खाली नही मेरी।जिंदगी के मैराथन मैंने दोपहर में ही जिये,कभी पीछे रह गई,कभी हार गई।किन्तु इस दोपहर का साथ वफादारी का नमूना जो था, उसे भी साथ होना था, मुझे उसकी परछाई में चलना था।तो जिंदगी तल्ख धूप में झुलसाने के लिए धन्यवाद।मैं तांबा बन गई।शुद्ध,चमकदार,साफ।
ये शाम ,इस शाम क़े खाली बर्तन से बनते पलो ने तो मुझे लेखक बना दिया।जिंदगी में जो जितना तन्हा वो उतना लिखेगा,पन्ने भरेगा।ये सबक शाम ने दिया जिंदगी भर।मन जो अक्सर ठहरा,वो यही शाम होती है।जिंदगी थी हर शाम में,किन्तु सीर्फ़ खाली जिंदगी आपकी शाम को एक नई कविता दे जाती।इस शाम के सबक उतने ही रूमानी है,जितना कि आसमान का नारंगी होना।इन खाली शामो का हिसाब जिंदगी ,मुझे बगीचों के धुंलके रंग में दे ही जाती।इस शाम ने मुझे आईना बना दिया,हर तस्वीर साफ दिखती।
रात तो ऐसी की फिरदौस ,या की यायावर स्वप्न। जिंदगी की इन रातों में अक्सर मैंने पाठ अमावस्या के ही पढ़े।जिंदगी सही थी,तुम। अमावस्या के रहने से पूर्णिमा के आने की आस रहती है,इंसान को।50+की उम्र तक कि अमावस्या में,मुझे तारो जैसे तीन बच्चे जन्म देने की पूर्णिमा राते दी इस जिंदगी ने।जो मेरी तमाम अमावस्या की रातों को,पूर्णिमा में बदलने का माद्दा रखते है।इन रातों में गहन अंधेरों ने मुझे दिए कि रोशनी करना सिखाया,जो मुझे साहसी बनाता है,सच्चा,और दयालुता से भर देता है,एक दिया जलाना मेरा।इन रातों के रोशन दियों ने मुझे चांदी बना दिया।जिंदगी की कीमत चांदी सी सफेद उम्र में ही प्रस्तुत होती है।ये उम्र की चांदी अभी भी अपने मेहबूब (म्रत्यु)के इंतज़ार में ,रातों को सांसों का अलख धूना ,लोभान की महक से कटती रहती है।ताश के पत्तो सी उम्र को कभी जिंदगी पुराना महल बना देती,कभी युद्ध की ढाल।कभी आरजू ,कभी ख्वाहिश की दावत।
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