दो दिन पूर्व सृजन संसार मंच की मासिक गोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न हुई। अनेक साहित्यकार और साहित्य जगत के पुरोधा मंच पर आसीन थे। विभिन्न रचनाओं का सृजन और सुंदर आगाज कलमकारों ने प्रस्तुत किया। संस्थापक आ.सदानंद यादव सर का इतने सुंदर मंच हमें प्रदान करने के लिए बहुत शुक्रिया। मैंने भी अपनी प्रस्तुति दी- शीर्षक- दर्द का फ़साना
दर्द का फ़साना
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दर्द लेकर आया तू,
दर्द ही देकर जाना है,
दर्द का तो बस यही फ़साना है।
इसलिए जतन कर तू इतना, वक्त आया तो सबको खुश कर देना।
मुकम्मल जहां
सभी को नसीब कहां होता,
रौशनी के लिए एक दीया ही ज्यादा है।
सुनो यारों,उनको रौशन सारा
मकान करना है।
हमें तो दुखी दिलों को बस हंसाना है।
दर्द लेकर आया तू, दर्द ही देकर जाना है,
फिलवक्त, एक दूसरे को आओ समझना और समझाना है।
जगह कम पड़ जायेगी तो ठहरने का और भी ठिकाना है।
तू सोच आपनी क्या क्या करना तुझे बहाना है।
हमें तो सबका मिला प्यार, बस मेहबूबा की तरह इतराना है।
दर्द लेकर आया तू, दर्द ही देकर जाना है।
पैसे से तुझे हर चीज खरीदना और बेचना है।
हमें तो मधुर रिश्तों से कीमती कोई चीज नहीं लगती।
उनका अपनापन और प्यार ही जीवनभर पाना है।
दर्द लेकर आया तू, दर्द ही देकर जाना है,
कहां रहता सभी का स्थिर कभी खजाना है।
एक दिन उसके हाथ एक दिन इसके हाथ, उसे तो बस आना और जाना है।
नहीं जानते वो नादान,
शान उनकी रहती अक्सर।
जिनके मुठ्ठी में जमाना है।
दर्द लेकर आया तू, दर्द ही देकर जाना है।
हंसी ख़ुशी से नहीं भेंट होगी तुम्हारी कभी, तुमसे मिलकर तुमको यह बताना है।
मान लो तुम जरा हमारा कहना।
गले सभी को लगाओ, सुख-वैभव को देकर तिलांजलि।
असल जिंदगी का मतलब प्यार देना और प्यार पाना है।
लगे बुरी किसी की बात या फिर जज़्बात।
तो रहो इत्मीनान थोड़ा,
उम्रभर थोड़े ही उसे मनाना है।
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