दिवस' और हजारीबाग के 'दो साहित्यकार'
हिंदी दिवस पर हिंदी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाले हजारीबाग के दो हिंदी साधकों के संदर्भ में कुछ बातें कहने जा रहा हूं । हजारीबाग प्रारंभ से ही साहित्यकारों के लिए एक उर्वरा भूमि की तरह रही है। यहां के मौसम की खासियत यह है कि जो भी यहां एक बार आते हैं, यहां की हरियाली और सुहावना मौसम से इस कदर प्रभावित हो जाते हैं कि उन्हें बार-बार हजारीबाग आने का मन हो उठता है।
हजारीबाग बागों का शहर हुआ करता था। यहां के मौसम की चर्चा कई अन्य प्रदेशों में भी होते रहती है । हजारीबाग में कई ऐसी कोठिया हैं, जो गर्मी के मौसम में ये कोठियां खिल उठती हैं । इन कोठियों के मालिक गर्मी के मौसम में यहां आकर राहत की सांस लेते हैं । हजारीबाग के कनहरी ही पहाड़, नेशनल पार्क,, झील आदि मनोहर स्थलों को देखने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग आते हैं। ये पर्यटक यहां की शुद्ध हवा का लुफ़्त उठाते नहीं थकते हैं। देश के जाने-माने कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु ने हजारीबाग के ही धरती पर अपनी कई रचनाओं को पूरा किया था। प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब रहने के कारण यहां नियमित रूप से हिंदी, बांग्ला, भोजपुरी और खोरठा आदि फिल्मों का शूटिंग होते रहती है ।
हिंदी दिवस पर हजारीबाग की प्राकृतिक छटा पर कुछ बातें इसलिए दर्ज की है कि जिस व्यक्ति के अंदर साहित्य रचना करने की थोड़ी सी भी ललक होगी, हजारीबाग का वातावरण, यहां का सौंदर्य उसे पंख प्रदान कर देगा । यह है, हजारीबाग की खासियत।
भारत यावर जैसे शख्सियत की जन्म भूमि हजारीबाग रही है। वे बाल काल से लेकर मृत्यु पूर्व तक हिंदी साधना में रत रहे थे। उन्होंने स्कूल जीवन से ही हजारीबाग में साहित्य मंडली का निर्माण करना प्रारंभ कर दिया था । उन्होंने हजारीबाग के जिले भर से साहित्यकारों को ढूंढ ढूंढ कर निकाला था। उन्होंने नए साहित्यकारों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया था। उन्होंने हजारीबाग में साहित्यिक माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
यह हजारीबाग की धरती का सौभाग्य रहा कि रतन वर्मा जी से महान साहित्यकार का आगमन यहां हुआ था। रतन वर्मा की जन्म भूमि दरभंगा है। उनका स्कूलिंग,महाविद्यालय और विश्वविद्यालय की शिक्षा दरभंगा में ही पूरा हुआ था । रतन वर्मा भी स्कूल जीवन से कविता रचना में रुचि रखते रहे हैं। उन्होंने कई कविताओं की रचना भी की है। उनके बड़े भैया एक जाने-माने कवि थे । अब वे इस दुनिया में नहीं रहे । रतन वर्मा अपने बड़े भैया के साथ भारत यायावर को ढूंढने के लिए उनके भारत मुद्रणालय प्रेस तक चले गए थे। वहीं पर तीनों साहित्यकारों का मिलन हुआ । यह मिलन साहित्य का बहुत ही खूबसूरत मिलन था। इस मिलन ने हजारीबाग के भावी साहित्यकारों को ढूंढने और उनसे रचना कर्म करवाया । रतन वर्मा के बड़े भाई कुछ दिनों बाद चले गए थे। लेकिन रतन वर्मा और भारत यायावर का मिलना बराबर होता रहा था। रतन वर्मा एक प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। इनमें साहित्य सृजन की जबरदस्त क्षमता है। रतन वर्मा के इस प्रतिभा को भारत यावर ने पहचाना और उन्होंने उनसे कथा साहित्य लेखन के लिए आग्रह किया था । यह मैं यह लिखना उचित समझता हूं कि रतन वर्मा के अंदर छिपे इस सृजन क्षमता को सर्वप्रथम भारत यायावर नहीं समझा था । रतन वर्मा एक के बाद एक कहानियों का सृजन करते रह रहे हैं । वे निरंतर देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे रहे हैं। रतन वर्मा साहित्य से जुड़ गए कि साहित्य के साधक ही बन गए। उन्होंने नियमित रूप से लिखना आरंभ कर दिया था। भारत यायावर और रतन वर्मा दोनों ने मिलकर हजारीबाग में एक साहित्यिक माहौल बनाने में अपनी महती भूमिका अदा की । आज हजारीबाग में जो भी नए साहित्यकार लिख रहे हैं, उनमें अधिकांश साहित्यकारों के निर्माण में कहीं न कहीं भारत यायावर और रतन वर्मा की भागीदारी है।
रतन वर्मा के और भारत यायावर के अलावा भी कई साहित्यकार हजारीबाग में कार्यरत हैं । डॉक्टर शंभू बादल, डॉक्टर प्रमिला गुप्ता, डॉ विजय संदेश, डॉक्टर सुबोध सिंह शिवगीत ,डॉक्टर विकास कुमार सहित कई रचनाकार अपने अपने साहित्य रचना कर्म से हजारीबाग का नाम रौशन कर रहे हैं । इन साहित्यकारों की दर्जन भर से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
हिंदी दिवस पर हिंदी के महान साधक भारत यायावर का स्मरण करना उचित समझता हूं । हाल के वर्षों में भारत यायावर का जाना हजारीबाग के साहित्यिक माहौल के लिए एक अपूरणीय क्षति के समान है। जिसे भर पाना बहुत ही बमुश्किल है । आज भी उन्हें याद कर आंखें नम हो जाती हैं । विरले ऐसे साहित्यकार इस धरा पर जन्म लेते हैं, जिनका सिर्फ और सिर्फ साहित्य सृजन के लिए ही जन्म हुआ था । उन्हें छात्र जीवन से ही हिंदी से प्रेम था । उन्होंने विपुल साहित्य का सृजन किया। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन हिंदी को समर्पित कर दिया था। भारत यायावर ने हिंदी के महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेनू, महावीर प्रसाद द्विवेदी के बिखरे पड़े रचनाओं को देशभर के पुस्तकालयों से ढूंढ ढूंढ कर रचनावली का निर्माण किया। दोनों रचनावली राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई । इसके अलावा उन्होंने हिंदी के कई महान लेखकों, कथाकारों, कवियों, आलोचकों और समीक्षकों की कृतियों और जीवनी पर महत्वपूर्ण काम किया। वे एक लेखक, संपादक, आलोचक के साथ कवि भी थे । उन्होंने एक कवि के रूप में लेखन प्रारंभ की थी। बाद के कालखंड में वे संपादन के क्षेत्र में आगे बढ़ते चले गए। उन्होंने चार सौ से अधिक कविताओं का लेखन किया। उनका लगभग चार कविता संग्रह प्रकाशित है। उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। उनकी कई कविताओं का रूसी भाषा में भी अनुवाद हुआ । उनकी एक कविता संग्रह पर रूस की एक हिंदी साहित्यिक संस्था ने 'पुश्किन पुरस्कार' से नवाजा था। भारत के एक नहीं, कई ऐसे लेखक हैं, जो हिंदी लेखन के बल पर विश्व मानचित्र पर सदा सदा के लिए अपनी कृतियों को अंकित कर दिया।
रतन वर्मा ने विपुल साहित्य की रचना किया है। इनकी कहानियों की खासियत यह है कि जब भी पाठक पढ़ेंगे, कहानी कुछ न कुछ नया संदेश जरूर देती नजर आती हैं। इनकी समस्त कहानियां संवेदना से ओतप्रोत है। इन्होंने अपनी कहानियों में जिन मूल्यों को स्थापित किया है, आजीवन उन्हीं मूल्यों पर चलते रहे हैं । ऐसा विरले उधारण मिलता है। आज की बदली परिस्थिति में कथाकार की कहानी कुछ कहती है, और उनका दैनंदिन का जीवन कुछ और दिखता है। रतन वर्मा ने हिंदी साहित्य के दोनों विधाओं पर काम किया है। उनमें कविता रचना की जबरदस्त क्षमता है । उनकी कई कविताएं फेसबुक पर आती रहती हैं। लेकिन उन्होंने अपनी ज्यादातर कविताओं को छुपा कर ही रखा है। अपनी कविताओं के छुपा कर रखने में क्या राज है ? यह बात वही जाने। रतन वर्मा ने अपनी कड़ी मेहनत और तपस्या से ही अपनी पहचान बनाई है। आज वे देश के जाने-माने कथाकार है । इन्होंने ढाई सौ से अधिक कहानियां लिखीं, जो देश के विभिन्न प्रतिष्ठित हिंदी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं । उन्होंने कई उपन्यास, लघु उपन्यास और नाटक भी लिखे हैं। वे नियमित हिंदी साधना में रत हैं । उनका एक नाटक 'नेटुआ' विश्व ओलिंपियाड हिस्सा बना। इस नाटक का मंचन देश के विविध मंचों पर हुआ। विदेशों में भी इस नाटक का सफलतापूर्वक मंचन हो रहे हैं ।
आज हम सब हिंदी दिवस पर भारत यायावर को बहुत ही मिस कर रहे हैं। मुझे अच्छी तरह याद है, हिंदी दिवस पर भारत यायावर, रतन वर्मा और मैं किसी न किसी रूप में गोष्ठी आयोजित करते रहे थे। इन गोष्ठियों में भारत यायावर, रतन वर्मा सहित हजारीबाग के प्रबुद्ध साहित्यकारों को सुनते रहे थे। भारत यायावर का न रहना एक बड़ी कमी का एहसास होता है। रतन वर्मा भी भारत यायावर के ना रहने पर इस कमी को अंदर ही अंदर महसूस करते होंगे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में भारतावर के साथ अपने साहित्यिक संबंधों की चर्चा की है। यह आत्मकथा 'प्राची' नामक हिंदी की एक साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। भारत यायावर और रतन वर्मा ने हजारीबाग में साहित्यिक माहौल निर्माण में महती भूमिका अदा किया । भारत यायावर के ना रहने से रतन वर्मा थोड़ा कमजोर जरूर हुए हैं, लेकिन आज भी वे हजारीबाग में साहित्यिक माहौल बना रहे हैं। वे नए लेखकों को साहित्य से जोड़ रहे हैं। आज भी रतन वर्मा, भारत यायावर को याद कर उनकी आंखें नम हो जाती हैं।
विजय केसरी,
( कथाकार / स्तंभकार )
पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301.
मोबाइल नंबर :- 92347 98550.
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