कौन खतरनाक ?
एक बार रात के समय, एक शेर, जंगल से एक गाँव में आ गया। वह एक झोपड़ी के बाहर, दीवार के साथ जा बैठा।
उस समय उस झोपड़ी में, एक चार वर्ष का बच्चा जोर जोर से रो रहा था। उसकी माँ उसे चुप कराने का प्रयास कर रही थी।
माँ ने बच्चे से कहा- बेटा चुप हो जा, नहीं तो शेर आ जाएगा।
पर बच्चा चुप नहीं हुआ। उस बाहर बैठे शेर ने सोचा कि ये बच्चा बड़ा ढीठ है, जो मुझ से भी नहीं डरता।
फिर माँ ने कहा- बेटा चुप हो जा, मैं किशमिश लाती हूँ।
बच्चा तुरंत चुप हो गया। उस शेर ने विचार किया कि लगता है यह किशमिश कोई मुझसे भी खतरनाक जीव है। यह विचार कर शेर भय से काँपने लगा।
संयोग से उस समय, उसी झोपड़ी के छप्पर पर एक चोर भी छिपा हुआ था। शेर के काँपने से, उसे लगा कि कोई आ गया। नीचे देखा तो उसे शेर दिख गया। शेर देख कर वह भी भय से काँपने लगा और हड़बड़ी में छप्पर से फिसल कर, सीधा शेर के ऊपर ही आ गिरा। और मरता क्या न करता, वह चोर शेर की गर्दन के बाल (अयाल) कस के पकड़कर शेर से चिपक गया।
शेर को लगा कि उस पर किशमिश चढ़ आया। वह घबरा कर तेजी से जंगल की ओर दौड़ने लगा।
वह तो दैवयोग से इतने में उस चोर को, सामने पेड़ की एक टहनी लटकती दिखाई दे गई। वह चोर उस टहनी को पकड़ कर लटक गया। और शेर जंगल में भाग गया।
गुरु कहता है कि जब कोई मनुष्य, उस शेर की ही तरह, वस्तु को कुछ का कुछ समझ लेता है, माने जब मनुष्य को वस्तु में अवस्तु का भ्रम हो जाता है, तब उसके स्वरूप पर आवरण पड़ जाता है और वह योंही अपना बल भूल कर, बिना किसी बात के, भयग्रस्त हुआ, मारा मारा दौड़ा करता है।
समझना यह है कि मिथ्या जगत को सत्य मान लेने से, अपने आत्मस्वरूप पर अज्ञान का आवरण पड़ गया है, और सर्वसमर्थ शाश्वत मुक्त परमेश्वर का अंश, अपने को असहाय मरणधर्मा और बंधनग्रस्त मानकर, बार बार मृत्यु का ग्रास बन रहा है।
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