रोम यात्रा की यादें
यह कोलोसियम का विहंगम दृश्य है। यहीं ऊपर शासक बैठते थे, नीचे तलघर में दास क़ैद रहते थे। पाँच मंज़िला इस ढाँचे में पहली मंज़िल पर एक मंच है। वहीं दासों को आपस में या भूखे शेरों से लड़ाया जाता था। यह दासप्रथा पर आधारित रोम साम्राज्य के सत्ताधारियों का प्रिय मनोरंजन था।
दासप्रथा के अत्याचारों से पीड़ित समाज में अपने सत्ताधारियों को बचाने की इच्छा नहीं थी। इसीलिए जब ईसाई क्रूसेड हुआ तो रोमन साम्राज्य ढह गया। वहाँ ईसाइयों के शासन हो गया। पुरानी सभ्यता नष्ट कर दी गयी। पुराने देवी-देवता भुला दिए गये। इस कोलोसॉलियम में भी ईसाई सत्ता का प्रभाव अंकित कर दिया गया। मोबाइल से ली गयी तस्वीर में इतने बारीक डिटेल्स नहीं आ सके। लेकिन यह अवशेष बहुत अनोखा है।
मुझे बार-बार भारत की याद आया करती थी। हमारे यहाँ दासप्रथा जैसी क्रूरता नहीं थी। पर अस्पृश्यता का अभिशाप था। शूद्रों और अछूतों को समाज में खास सम्मानजनक दर्ज़ा नहीं मिला हुआ था। इसलिए जब इस्लामी हमले शुरू हुए तो शासक क्षत्रिय आपसी लड़ाइयों और कन्या-हरण में उलझे हुए थे और ब्राह्मण पुरोहित अंधविश्वासों में स्वयं लिप्त थे और जनता को उलझाए हुए थे। देश परास्त हुआ।
दास हों या दलित, जहाँ भी श्रमजीवियों को राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग रखा गया, वहाँ पतन और विनाश हुआ। यूरोप ने नवनिर्माण पर ध्यान दिया। भारत में हज़ार साल पहले अपने पुरखों के पाप पर पछताने की जगह पुराने विजेताओं के वंशजों से बदले की राजनीति होती है।
यूरोप की यात्रा और उस इतिहास के साक्षात्कार से नई दृष्टि मिलती है। बस आत्मा भारतीय रहनी चाहिए। ज्ञान हर जगह है, हर जगह से मिल सकता है।
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