कविता
साँवली सलोनी वह चेहरा /
यह बात बहुत पुरानी है,अधुरी प्रेम कहानी है,
जब भी किसी गोरी को देखूँ ,उसका चेहरा याद आता है,
साँवली सलोनी वह चेहरा,मेरे मन को बहुत भाता है।
साँवली सलोनी...।
मेरी नयी-नयी जवानी का,था वह पहला प्यार ,
उसकी एक मुस्कान पर,मेरा दिल गया था हार,
जब-जब कोई भोली सूरत देखूँ,मेरा दिल धड़क सा जाता है।
साँवली सलोनी...।
मृगनयनी सी आँखे उसकी,थी गजब की चाल,
मनमोहनी मुस्कान थी उसकी,घने थे उसके बाल,
जब भी कोई मनमोहनी देखूँ,तन-मन मेरा मुस्कुराता है।
साँवली सलोनी...।
मनमोहक छवि है उसकी,अच्छे उसके विचार,
दिल से वह है निर्मल-कोमल,अच्छे उसके व्यवहार,
आज भी मेरा यह मन,भूल नहीं उसे पाता है।
साँवली सलोनी...।
नाम है मनमोहनी उसका,मन खोया-खोया था जिसका,
जब भी निकलूं अपने घर से,उसका घर याद आता है,
नहीं देखूँ जब तक उसको,दिल को चैन नहीं आता है।
साँवली सलोनी...।
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दिल से आभार आदरणीय बबल भाई।
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