सोमवार, 17 जनवरी 2022

हतप्रभ कर गया इब्राहिम अश्क का अचानक यूं चले जाना / आलोक यात्री

 🙏🙏जिधर से आया हूं एक दिन उधर ही जाऊंगा

है कायनात मेरा घर मेरा पता है खुदा...


हतप्रभ कर गया इब्राहिम अश्क का अचानक यूं चले जाना


  सुबह-सुबह हतप्रभ कर देने वाली मनहूस खबर ने भीतर तक झंझोड़ दिया

  मशहूर शायर इब्राहिम अश्क अचानक यूं चले जाएंगे यकीन नहीं हो रहा

  साल 2000 में "कहो ना प्यार है" के टाइटल गीत और उसी फिल्म के तमाम गीत लिख कर‌ शोहरत की बुंलदियों पर जा बैठे इब्राहीम अश्क के लेखन से मेरा पहला साक्षात्कार एक गंभीर एक्सीडेंट के बाद (अप्रैल 2017 में) अस्पताल प्रवास के दौरान हुआ था

  तब तक मैं उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था

  उस दौरान मोबाइल फोन का इस्तेमाल मैं गाहेबाना तौर पर ही कर रहा था कि तभी कहीं एक बहुत खूबसूरत सा शेर देखने को मिला

  शायर का नाम नहीं था

  गुगल पर तलाशा तो इब्राहिम अश्क के लेखन से साक्षात्कार हुआ और फिर तो उनका अधिकांश लेखन अस्पताल के बैड पर पड़े-पड़े ही पढ़ गया

  एक सुबह अस्पताल के कमरे में चहलकदमी करते हुए अहसास हुआ कि कोई हौले-हौले कंधा थपथपा कर हौसला दे रहा है

  इधर-उधर देखा कोई नहीं था

  कमरे में किसी की मौजूदगी का अहसास लगातार हो रहा था परंतु दिख कोई नहीं रहा था

  लेकिन किसी अदृश्य शक्ति के होने का अहसास लगातार पुख्ता होता जा रहा था

  मेरा हाथ अनायास ही मोबाइल की ओर चला गया और मैं इब्राहिम अश्क की इस ग़ज़ल से जा जुड़ा- जो कुछ यूं है-


जिसे मैं कह न सका वो भी सुन रहा है खुदा

तमाम हरब की बातों को जानता है खुदा


कभी जो दिल से पुकारा उसे अकेले में

सदाएं सुन के मेरी जैसे रुक गया है खुदा


मुझे खता का अहसास जब भी हो जाए

तो यूं लगे कि मेरा जैसे आईना है खुदा


जिधर से आया हूं एक दिन उधर ही जाऊंगा

है कायनात मेरा घर मेरा पता है खुदा


तमाम फिक्र ख्यालात में छिपा है वही

के अश्क मेरी सदा में बोलता है खुदा


  मैं आस्तिक नहीं हूं और 

God is  created by man 

में यकीन रखता था


  ग़ज़ल से रूबरू होने के बाद मैंने मन ही मन उस अदृश्य शक्ति को प्रणाम किया और ग़ज़ल की कई पंक्तियों को बार-बार पढ़ा

  मैं यह सोच कर भी हैरान था कि बंद कमरे में वह कौन सी शक्ति थी जो मेरा कंधा थपथपा रही थी?

  मैं अचानक ही इस ग़ज़ल से ही जाकर क्यों जुड़ा? 

  क्या यह मेरे भीतर आस्था के अंकुरण की कोई नैसर्गिक प्रक्रिया थी?

  या किसी दैवीय शक्ति से साक्षात्कार जैसी कोई घटना?

  बहरहाल आज इब्राहिम अश्क जी जब इस दुनिया में नहीं हैं तो इस ग़ज़ल का एक-एक शेर उन्हीं की आवाज़ में कानों में गूंजता हुआ सा महसूस हो रहा है

खुदा उन्हें जन्नत बख्शे

🙏🙏🙏

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहिर लुधियानवी ,जावेद अख्तर और 200 रूपये

 एक दौर था.. जब जावेद अख़्तर के दिन मुश्किल में गुज़र रहे थे ।  ऐसे में उन्होंने साहिर से मदद लेने का फैसला किया। फोन किया और वक़्त लेकर उनसे...