शनिवार, 22 जनवरी 2022

भानगढ़ की सच्ची कहानी

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 'भारत एक अद्भुत और रहस्यमई देश है' यह बात पूरा विश्व जानता है। आज भी यहां पर ऐसे अनेक तहखानों के बंद दरवाजे पड़े हैं जिनमें कोई ताला नहीं है, कोई जंजीर नहीं है ! सिर्फ मंत्रों की ताकत से बंधे अपने सीने में न जाने कितने अनजाने राज छुपाए हैं। कुछ इसी तरह की रहस्यमई किंवदंतियों के कारण भानगढ़ का किला हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। भानगढ़ दुर्ग राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के पास में स्थित है। जिसका निर्माण राजा भान सिंह ने करवाया था। उन्होंने अपने पूरे शासनकाल तक यहां सुख पूर्वक शासन किया था। उनके बाद उनके पुत्र भगवंत दास ने गद्दी संभाली। भगवंत दास के भी दो पुत्र हुए... जिनका नाम मानसिंह व माधो सिंह था। माधो सिंह के 3 पुत्र हुए ...सुजान सिंह, छत्र सिंह और तेज सिंह.. माधो सिंह के बाद छत्र सिंह वहां के राजा बने।इसके बाद छत्र सिंह के पुत्र अजब सिंह हुए जिन्होंने मानगढ़ से दूर अजबगढ़ (अपने नाम पर) बसाया। इसके बाद अजब सिंह के दो पुत्र हुए...काबिल सिंह और हरि सिंह। काबिल सिंह अजबगढ़ में ही रह गए, लेकिन हरि सिंह ने पुनः भानगढ़ को स्वीकार किया।उसके बाद हरी सिंह के दो बेटों ने डर वस या लालच वस औरंगजेब के शासनकाल में इस्लाम स्वीकार कर लिया। लेकिन अभी भी भानगढ़ पर उनका अधिकार था। औरंगजेब के शासनकाल के बाद मुगल शक्ति कमजोर पड़ गई और सवाई जय सिंह जी ने भानगढ़ पर विजय हासिल करके अपना अधिकार जमा लिया...!!अभी तक भानगढ़ में सुख शांति और समृद्धि का राज्य था। अभी तक सब खुशहाल थे.....भानगढ़ के रहस्यमई और निर्जन होने के पीछे मुख्य रूप से दो कहानियां मिलती हैं। जिन्हें मैं अपनी शैली में लिखने का प्रयास करता हूँ। 

 

 पहली कहानी

 

 प्रथम कथा के अनुसार भानगढ़ दुर्ग के समीप एक सन्यासी तपस्वी रहते थे। जिनसे अनुनय विनय करके राजा भान सिंह ने वहां पर दुर्ग बनाने की अनुमति तो ले ली ! लेकिन साथ में यह शर्त स्वीकार करना पड़ा कि किसी भी हालत में दुर्ग की परछाई उस ऋषि की कुटिया तक नहीं पहुंचनी चाहिए.... और प्रारंभ में ऐसा ही था ! किंतु आगे चलकर उनके पुत्र भगवंत दास ने 1683 में दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाया और ऊंचाई बढ़ जाने के कारण उसका बिंब उस ऋषि की कुटिया तक पहुंचने लगा....ऋषि ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि," शीघ्र ही इस दुर्ग का विनाश हो जाएगा और यहां पर प्रेत आत्माएं वास करेंगी।" लेकिन यहां पर थोड़ा सा मतभेद है। यदि दुर्ग की ऊंचाई बढ़ जाने पर श्राप दिया गया तो फिर लगभग 200 साल तक वहां पर सुख समृद्धि का राज्य कैसे था ? इसलिए दूसरी कहानी अधिक महत्व रखती है... आइए उसके बारे में पढ़ते हैं।

 

 भानगढ़ के रहस्य के बारे में दूसरी कथा

 

 इस कहानी के अनुसार भानगढ़ के इतिहास में अचानक अद्भुत सुंदरी और बुद्धिमान राजकुमारी रत्नावती का नाम आता है। राजकुमारी रत्नावती की सुंदरता की चर्चा पूरे भारत में हो रही थी। कहा जाता है कि रानी पद्मावती से भी अधिक सुन्दर राजकुमारी रत्नावती का रूप था। जो भी उन्हें देखता था मानो सम्मोहित सा हो जाता था। एक बार की बात है राजकुमारी रत्नावती पास के बाजार में अपनी दासी के साथ घूमने गई थी। जैसे पूर्णिमा का चांद सारे तारों की रोशनी को फीका कर देता है, उसी प्रकार आज सारे बाजार में रत्नावती के अलावा कुछ भी दर्शन के योग्य नहीं था। संयोगवश उसी बाजार में तांत्रिक सिंघवी पहुंच गया था ! जो कि मानगढ़ की पहाड़ियों के दूसरी छोर पर अपनी कुटिया बनाकर तंत्र साधनाएं करता था...सिंघवी एक उच्च कोटि का तांत्रिक और तंत्र साधनाओं में पूरी तरह निपुण था। "स्त्री का सौंदर्य जगत की सबसे बड़ी शक्ति होती है।" आज यह परिभाषित हो रहा था... मनस्वी और संयमी सिंघवी आज रत्नावती को देखते ही अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार था। आज उसे बोध हो रहा था कि संसार में साधना से भी अधिक आकर्षक कुछ हो सकता है। यूँ तो तंत्र जगत की साधनाओं का नियम है सिद्धि हमेशा परोपकार के लिए की जाती है। लेकिन आज वह सब कुछ भूल कर बावरा हो गया। रत्नावती एक पल के लिए उसकी हो जाए, बदले में उसकी जान भी चली जाए तो उसे कोई पछतावा नहीं होगा। "जब पुरुष के हृदय पर स्त्री का आकर्षण हावी हो जाता है, तो उसे अपना सर्वस्व त्याग देने में जरा भी संकोच नहीं होता। फिर ऐसी परिस्थिति में राजा, योद्धा , तपस्वी अथवा फकीर सब एक जैसे हो जाते हैं उस परम मधु की एक बूंद को पाने के लिए।" सिंघवी उसी तरह राजकुमारी के पीछे पीछे चलने लगा जैसे हवा के साथ पेड़ के सूखे पत्ते उड़ते जाते हैं। कुछ देर बाद राजकुमारी एक इत्र की दुकान पर रूकती है, और कुछ खास प्रकार की इत्र को परखने के बाद अपनी दासी को इत्र लेने के लिए इशारा करती है। इत्र की सुगंध सिंघवी तक पहुंचती है और अचानक उसकी तन्द्रा टूटती है। राजकुमारी ...

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