🖖स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री भी हो सकती है, मित्रता भी हो सकती है, यह भारतीय परंपरा का अंग नहीं रही। भारतीय परंपरा ने कभी इतना साहस नहीं किया कि स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री की धारणा को जन्म दे सके।
और मैत्री होनी चाहिए।
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एक सुंदर, सुसंस्कृत व्यक्तित्व में इतनी क्षमता तो होनी चाहिए कि वह किसी स्त्री के साथ भी मैत्री बना सके, किसी पुरुष के साथ मैत्री बना सके। मैत्री का अर्थ है कि कोई शारीरिक लेन—देन का सवाल नहीं है, एक आत्मिक नाता है।
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एक पुरुष और एक स्त्री के बीच इस तरह की दोस्ती हो सकती है जैसे दो पुरुषों के बीच होती है, या दो स्त्रियों के बीच होती है। मैत्री का आधार बौद्धिक हो सकता है। दोनों के बीच एक बौद्धिक तालमेल हो सकता है। दोनों के बीच रुचियों का एक सम्मिलन हो सकता है। दोनों में संगीत के प्रति लगाव हो सकता है।
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पश्चिम में शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध नहीं है। यह श्रेष्ठतर बात है, ध्यान रखना। शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध अगर है, तो इसका अर्थ हुआ कि फिर आदमी के भीतर मन नहीं, आत्मा नहीं, परमात्मा नहीं, कुछ भी नहीं, सिर्फ शरीर ही शरीर हैं। अगर आदमी के भीतर शरीर के ऊपर मन है और मन के ऊपर आत्मा है और आत्मा के ऊपर परमात्मा है तो इन चारों तलों पर संबंध हो सकते हैं।
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मैत्री थोड़ी आध्यात्मिक बात है। थोड़े ऊंचे तल की बात है। तुम कल्पना ही नहीं कर सकते कि एक स्त्री और पुरुष में मैत्री है। कि एक स्त्री और पुरुष घंटों बैठकर दर्शनशास्त्र पर या काव्यशास्त्र पर विचार विमर्श करते हैं।
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