गाँव की चिट्ठी शहर के नाम
आगे का समाचार यह है
कि अब यहाँ जी नहीं लगता।
कोई छोटी-मोटी नौकरी का जुगाड़ हो सके
तो लिखना, चला आऊँगा।
गर्मी की छुट्टियों में
जब तुम बच्चों के साथ आते थे
तो कितना अच्छा लगता था--
तुम्हें भी, मुझे भी और बच्चों को भी।
तुम सोचते होगे --
आम का बगीचा
जामुन का पेड़
ताड़ के कोए
इमली और खजूर की फलियाँ आदि
आज भी
बच्चों की राह देख रहे होंगे
तो जान लो
अब ऐसा बिल्कुल नहीं है!
हालात बदल चुके हैं
गाँव के अब।
अब गाँव वो गाँव नहीं रहा!
बच्चों से कहना
टूटी हुई दीवार फाँदकर
खँढ़ी में घुस आई बकरियों के
दूध दूहने के रोमांच को
भूल जाएँ अब।
नदी में
जाँघ भर पानी वाले घाट पर
घंटों नहाते हुए मटरगश्ती करना
फटी हुई मच्छरदानी के टुकड़े से
छोटी-छोटी मछलियाँ पकड़ना
-- जानता हूँ
बच्चे ये सब 'मिस' करते होंगे!
कोलसार से उठती
गर्म- गर्म बन रहे गुड़ की गमक
बच्चों के नथुनों को
अब भी
बेचैन तो ज़रूर करती होगी!
भरी नदी में
नाव पर सवार होकर
झिंझरी खेलने के रोमांच को तो
बच्चे भूल गये होंगे अब!
अच्छा है
याद करने लायक
अब रहा भी नहीं कुछ यहाँ।
टीवी क्या आया गाँव में
देश को विदेश के
और गाँव को शहर के
क़रीब ला दिया
मगर आदमी को
आदमी से दूर कर दिया।
तुम्हें पता न हो शायद
होली के अवसर पर
अब दो-दो अगजे जलाए जाते हैं यहाँ --
बड़जातियों का अलग
छुटजातियों का अलग।
लुकवारी भाँजते हुए
इस गाँव से उस गाँव तक
जाने की बात तो छोड़ो
इस टोले से
उस टोले तक जाने में भी
डर लगता है।
दहशत इतनी
कि चार- चार, छह- छह लोगों की टीमें
रात-रात भर जागकर
पहरेदारी करती हैं
टोलों की।
गदहबेर में ही
संझा-पराती के फ़ौरन बाद
दरवाजों के पट
बंद हो जाते हैं।
बैकवर्ड - फॉरवर्ड
पार्टी- पाॅलिटिक्स
दल- गुट का खेला
अब जोरों पर है यहाँ!
टटके भिनसहिरा में
दिसा-मैदान के लिए
नदी की तरफ़ निकलना भी
कम हो गया है।
होरहा लगाने के लिए
एक- दो मुट्ठा चना कबारने
या खाने के लिए
खेत से दो-चार हरी मिर्ची तोड़ लेने पर
खून-खराबा हो जाना
अब आम बात है यहाँ।
गाँववालों के स्वागत में
हरदम बाँहें फैलाए रहनेवाले
लालाजी के दालान पर भी
सिर्फ सन्नाटों का ही राज है अब।
आपसी बतकही से
पहर भर रात बीतने तक
गुलज़ार रहनेवाला
बुधन साव का ओटा भी
शाम होते ही
उदासी ओढ़ लेता है।
सोती-पिरौटा से
सियारों की डरावनी आवाज़ों का
सुनाई देना
अब जल्दी शुरू हो जाता है।
कीर्तन- फगुआ
नाटक- नौटंकी
हलवा- मलीदा
ताजिया- जुलूस
-- सबके इलाके घोषित कर दिए
गये हैं।
शादी- विवाह की कौन कहे
मरनी- जीनी तक में
शामिल होनेवाले लोग
शामिल होने से ज्यादा
चौकन्ने रहने पर
ध्यान रखते हैं अब।
कौन जाने
कब, किधर से
हथियारबंद लोग आएँ
और छ: इंच छोटा कर जाएँ!
अब तुम्हीं बताओ
ऐसे में जी कैसे लगेगा
और कब तक लगेगा!
इसीलिए कहा रहा हूँ ---
कोई छोटी-मोटी नौकरी का भी जुगाड़ हो सके
तो लिखना, चला आऊँगा।
कम से कम
सुकून से सो तो पाऊँगा!
#प्रवीण_परिमल
इमेज गूगल से साभार
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