मंगलवार, 11 जनवरी 2022

*आशाएँ सब फलीभूत हों*/ दिनेश श्रीवास्तव



     

बीत गया यह साल दिखाकर,अपनी कारस्तानी को,

लील गया कितनों को इसने,कर अपनी मनमानी को।


कोरोना का काल भयंकर,कैसे कह दूँ सुखमय था,

जिसने चौदह सैनिक छीनें,जनरल -सा बलिदानी को।।


टीस पुरानी विगत वर्ष की,शीघ्र तिरोहित हो जाए,

बाइस इतनी खुशियाँ लाए,जन-जन का मन हर्षाए।


आशाएँ सब फलीभूत हों,और निराशा पास न हो,

झूमें गाएँ आज भूलकर,बीती हुई कहानी को।।


यही प्रार्थना करता हूँ हो,नया साल सुखमय अपना,

रोग व्याधि से मुक्त सभी हों,कभी न हो दुख से तपना।


नतमस्तक हों पाक-चीन सब,सीमा सदा सुरक्षित हो,

विश्वपटल भी जाने-समझे,भारत के इस सानी को।।


यह अखंड भारत हो अपना,यहाँ चतुर्दिक शांति रहे,

सक्षम है यह देश हमारा,नहीं किसी को भ्रांति रहे।


बनें नीतियाँ ऐसी अपनी, दुश्मन भी लोहा माने,

आतंकी मंसूबों पर हम, फेर सकें अब पानी को।।


               दिनेश चंद्र श्रीवास्तव

                ग़ाज़ियाबाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किशोर कुमार कौशल की 10 कविताएं

1. जाने किस धुन में जीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।  कैसे-कैसे विष पीते हैं दफ़्तर आते-जाते लोग।।  वेतन के दिन भर जाते हैं इनके बटुए जेब मगर। ...