भारतीय पिता पुत्र की जोड़ी भी बड़ी कमाल की जोड़ी होती है ♦️घर में दोनों अंजान से होते हैं,
एक दूसरे के बहुत कम बात करते हैं, कोशिश भर एक दूसरे से पर्याप्त दूरी ही बनाए रखते हैं। बस ऐसा समझो कि दुश्मनी ही नहीं होती।
♦️माहौल कभी भी छोटी छोटी सी बात पर भी खराब होने का डर सा बना रहता है और इन दोनों की नजदीकियों पर मां की पैनी नज़र हमेशा बनी रहती है।
♦️ऐसा होता है जब लड़का,
अपनी जवानी पार कर,
अगले पड़ाव पर चढ़ता है,
तो यहाँ,
इशारों से बाते होने लगती हैं,
या फिर,
इनके बीच मध्यस्थ का दायित्व निभाती है माँ ।
♦️पिता अक्सर पुत्र की माँ से कहता है,
जा, "उससे कह देना"
और,
पुत्र अक्सर अपनी माँ से कहता है,
"पापा से पूछ लो ना"
इन्हीं दोनों धुरियों के बीच,
घूमती रहती है माँ ।
♦️जब एक,
कहीं होता है,
तो दूसरा,
वहां नहीं होने की,
कोशिश करता है,
शायद,
पिता-पुत्र नज़दीकी से डरते हैं।
जबकि,
वो डर नज़दीकी का नहीं है,
डर है,
माहौल बिगड़ने का ।
♦️भारतीय पिता ने शायद ही किसी बेटे को,
कभी कहा हो,
कि बेटा,
मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ...
जबकि वह प्यार बेइंतहा ही करता है।
पिता के अनंत रौद्र का उत्तराधिकारी भी वही होता है,
क्योंकि,
पिता, हर पल ज़िन्दगी में,
अपने बेटे को,
अभिमन्यु सा पाता है ।
♦️पिता समझता है,
कि इसे सम्भलना होगा,
*इसे मजबूत बनना होगा,*
ताकि,
ज़िम्मेदारियो का बोझ,
इसको दबा न सके ।
♦️पिता सोचता है,
जब मैं चला जाऊँगा,
इसकी माँ भी चली जाएगी,
बेटियाँ अपने घर चली जायेंगी,
तब,
रह जाएगा सिर्फ ये,
जिसे, हर-दम, हर-कदम,
परिवार के लिए, अपने छोटे भाई के लिए,
आजीविका के लिए,
बहु के लिए,
अपने बच्चों के लिए,
*चुनौतियों से, सामाजिक जटिलताओं से, लड़ना होगा ।*
♦️पिता जानता है कि,
हर बात,
घर पर नहीं बताई जा सकती,
इसलिए इसे,
खामोशी से ग़म छुपाने सीखने होंगें ।
♦️परिवार और बच्चों के विरुद्ध खड़ी...हर विशालकाय मुसीबत को,
अपने हौसले से...दूर करना होगा।
♦️कभी कभी तो ख़ुद की जरूरतों और ख्वाइशों का वध करना होगा ।
इसलिए,
वो कभी पुत्र-प्रेम प्रदर्शित नहीं करता।
♦️पिता जानता है कि,
प्रेम कमज़ोर बनाता है ।
फिर कई बार उसका प्रेम,
झल्लाहट या गुस्सा बनकर,
निकलता है,
♦️वो गुस्सा अपने बेटे की
कमियों के लिए नहीं होता,
वो झल्लाहट है,
जल्द निकलते समय के लिए,
वो जानता है,
उसकी मौजूदगी की,
अनिश्चितताओं को ।
♦️पिता चाहता है,
कहीं ऐसा ना हो कि,
इस अभिमन्यु की हार,
*मेरे द्वारा दी गई,*
*कम शिक्षा के कारण हो जाये...*
♦️पिता चाहता है कि,
पुत्र जल्द से जल्द सीख ले,
वो गलतियाँ करना बंद करे,
हालांकि गलतियां होना एक मानवीय गुण है,
लेकिन वह चाहता है कि *उसका बेटा सिर्फ गलतियों से सबक लेना सीख ले।*
सामाजिक जीवन में बहुत उतार चढ़ाव आते हैं, रिश्ते निभाना भी सीखे,
♦️फिर,
वो समय आता है जबकि,
पिता और बेटे दोनों को,
अपनी बढ़ती उम्र का,
एहसास होने लगता है,
बेटा अब केवल बेटा नहीं, पिता भी बन चुका होता है,
कड़ी कमज़ोर होने लगती है।
♦️पिता की सीख देने की लालसा,
और,
बेटे का,
उस भावना को नहीं समझ पाना,
वो सौम्यता भी खो देता है,
यही वो समय होता है जब,
*बेटे को लगता है कि,*
*उसका पिता ग़लत है,*
बस इसी समय को समझदारी से निकालना होता है,
वरना होता कुछ नहीं है,
बस बढ़ती झुर्रियां और बूढ़ा होता शरीर जल्द बीमारियों को घेर लेता है ।
फिर,
*सभी को बेटे का इंतज़ार करते हुए माँ तो दिखती है,*
पर,
*पीछे रात भर से जागा,*
*पिता नहीं दिखता,*
जिसकी उम्र और झुर्रियां,
और बढ़ती जाती है, बीमारियां भी शरीर को घेर रहीं हैं।
*पिता अड़ियल रवैए का हो सकता है लेकिन वास्तव में वह नारियल की तरह होता है।*
कब समझेंगे बेटे,
कब समझेंगे बाप,
कब समझेगी दुनिया ????
पता है क्या होता है,
उस आख़िरी मुलाकात में,
जब,
जिन हाथों की उंगलियां पकड़,
पिता ने चलना सिखाया था,
वही हाथ,
लकड़ी के ढेर पर पड़े
पिता को
लकड़ियों से ढकते हैं,
उसे घी से भिगोते हैं,
और उसे जलाते हैं, *इसे ही पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाना कहते हैं।*
ये होता है,
हो रहा है,
होता चला जाएगा ।
जो नहीं हो रहा,
और जो हो सकता है,
वो ये,
कि,
*हम जल्द से जल्द,*
*कहना शुरु कर दें,*
*हम आपस में,*
*कितना प्यार करते हैं?*
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