अग्रज रचनाकार भारत यायावर जी के आकस्मिक निधन की सूचना वज्रपात की तरह है.....
हमारा कोई चार दशकों का संपर्क-सम्बन्ध रहा.... तब जबकि उनकी प्रतिभा हज़ारीबाग़ में उदित हो रही थी और मैं पलामू में क़लम-कागज़ पकड़ना सीख रहा था....
अस्सी के दशक के आरंभ में प्रलेस के डाल्टनगंज में आयोजित राज्य सम्मेलन के मंच पर उन्हें पहली बार ग़ज़लगो के रूप में देखा था.
कोयल तट पर टाऊन हॉल के प्रशाल में उन्होंने मंच से अपनी ग़ज़ल प्रस्तुत की थी--
... "...शब्द बिखरे पड़े हैं जोड़िए / सन्नाटा बहुत है तोड़िए "
उनकी यह ग़ज़ल डाल्टनगंज से ही गोकुल बसंत के संपादन में निकलने वाली पत्रिका ' सार्व' में छपी थी. बाद में 'रेणु रचनावली' और 'महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली' के रूप में उन्होंने हिंदी साहित्य को अमूल्य योगदान दिया, जिसका महत्व शब्द संसार ने अनुभूत किया और मान दिया.
वह अस्सी के दौर में उभरे हिंदी के कवियों में प्रमुख हैं. सबसे हाल में उनकी लिखी 'रेणु' की जीवनी हिंदी साहित्य को उनका बड़ा योगदान है. इसका दूसरा भाग भी लिखने की उन्होंने घोषणा की थी.... ओफ्फ... उन्हें नियति ने इसका अवकाश नहीं दिया...
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रचनात्मकता के अपने दायरों में कई तरह की स्वाभाविक दुर्भाग्यपूर्ण धुंध उतरती रहती है... बिना कुछ कहे-सुने भी आपस में दूरियां-नजदीकियां बनती-बिगड़ती रहती हैं...लेखकों के बीच चाहे-अनचाहे अबोलापन पनपता रहता है ! ......
पता नहीं किस बात को लेकर पिछले दिनों भारत यायावर अचानक मुझसे खिंच गए.
मैं हर दो-चार दिन पर उन्हें नम्बर मिलाता, वे कॉल ही नहीं उठाते थे. एक दिन उनके भतीजे कथाकार सुबोध सिंह शिवगीत से संपर्क हुआ.
शिवगीत जी ने उनके घर पहुंच कर उनसे बात करवाई. फोन पर भारत जी बताने लगे कि वे बीमार हो गए थे इसलिए कॉल नहीं उठा रहे थे. हक़ीकत जबकि यह नहीं थी. वे दरअसल नाराज़ या रुठे थे...
उनकी रुठने की आदत यह हृदय विदारक दृश्य उपस्थित कर देगी, सोचा न था...
....अग्रज, यह अच्छा नहीं किया !
...... नमन !!!!!!!!! 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏
Anil Janvijay Jyotish Joshi
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