बुधवार, 17 नवंबर 2021

बिरसा_मुंडा / कैलाश मनहर

 आदिवासी नायक #बिरसा_मुंडा को याद करते हुये

****************************************

भूख से शुरू हुई थी उसकी जीवन-यात्रा

और अपनी भूख मिटाने के लिये 

कुछ भी खाते रहने के समय में

रोग और मृत्यु की पीड़ाओं के अनुभव से

पहली बार उसने ही समझा 

भक्ष्य-अभक्ष्य का भेद

और पत्थर मार कर लक्ष्य-बेध करने लगा 

पर्याप्त सतर्कता और सटीकता के साथ 

फलों और माँस के लिये 

लक्ष्य पर पत्थर मारते हुये न जाने कब

कौन-सा पत्थर टकराया दूसरे से 

कि चिंगारी जो निकली 

और जलने लगी सूखी घास

सिंके हुये को खाने का 

सामूहिक स्वाद पहली बार जाना उसी ने 


और जब जलती हुई आग देख कर 

भागने लगे हिंसक वनचर 

जो शत्रु मानते थे उसे अपना तो

आग से जीवन का रिश्ता भी 

उसी ने जाना सबसे पहले सुरक्षार्थ


और उगना भी कि 

कैसे उगता है कोई बीज

कई सदियों की यात्रा के बाद

उसी ने सीखा 

धरती की मिट्टी में फसलें बोना शनै: शनै:

उसी ने जानी 

उर्वरा-शक्ति अपनी धरती की

उसी ने बढ़ाई 

मनुष्यता की वंश-बेल इस सृष्टि में


ओ!तथाकथित सभ्य लोगो!

उसी की संतान हो तुम 

जो सीख कर छल-छद्म के पैंतरे

ठगने लगे उसी को और

अब उसी को करने पर आमादा हो 

बेदख़ल अपने हक़ से कि

जिसका पहला हक़ है 

उर्वरा धरती पर सहस्त्राब्दियों से


लेकिन याद करो कि 

शुरू हुई थी उसकी यात्रा भूख से

भक्ष्य-अभक्ष्य में भेद करते हुये 

उसी ने लक्ष्य-बेध करना सिखाया 

समूची सभ्यता को और

अभी भी भूला नहीं है वह

हिम्मत और हुनर आदिकालीन

अभी भी जानता है 

पत्थर मारना अपने लक्ष्य पर


तुम शायद भूलते जा रहे हो उसे 

और उसकी भूख को अभी

सत्ता में मदान्ध पाखण्ड-बोध से 

गर्वित व्यर्थ की बर्बरता के


जबकि उसे याद है अच्छी तरह

शुरूआत अपनी यात्रा की

और पड़ाव भी सारे जीवन-संघर्ष के

******************************************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साहित्य के माध्यम से कौशल विकास ( दक्षिण भारत के साहित्य के आलोक में )

 14 दिसंबर, 2024 केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के हैदराबाद केंद्र केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद  साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास (दक...