रविवार, 28 नवंबर 2021

ब्राह्मण रावण

 यह कथा मेने दक्षिण भारत की लिखी एक पुस्तक है महर्षि कम्बन की जिसका नाम है राम अवतारम या रमावताराम उसमें एक अदभुत कथा है जो तुलसी रामायण या बल्मिकी रामायण में नही है वहाँ से लिखी है बहुत   अच्छा प्रसंग है

जब भगवान राम ने समुद्र तट पर शिवलिंग की स्थापना करनी चाही तो उन्होने जाम्बवंत से कहा आस पास कोई ऐसा ब्राम्हण नही है सेय और वेष्णव दोनो परम्परा से पारंगत हो जाम्बवंत ने कहा ऐसा एक ही आचार्य है जो हमारा शत्रु और पुलस्त ऋषि का नाती है जो दोनो परंपराओं से पारंगत और शिव भक्त है और कर्म कांडी भी है तो राम जी ने कहा एक बार जाओ और बात कर के देखिए ये कथा राम अवतारम मे कथा है दुश्मन भी हो तो ऐसा हो ।यहाँ एक शेर याद आता है  


🌹हाथ में ख़ंजर नही आँखो मे पानी चाहिए 🌹

🌹ये खुदा दुश्मन भी मुझे ख़ानदानी चाहिए 🌹

रावण जेसा आचार्य भी कोई नही जाम्बवंत जी लंका पहुँचे राम जी के कहने पर रावण को यह बात पता चली जाम्बवंत आयें है जाम्बवंत जी उनके पितामह के दोस्त रह चुके है रावण को लगा मेरे बाबा के दोस्त आए है उनका स्वागत करना चाहिए आदर करना चाहिए रावण ने राक्षसों से कहा मेरे महल तक आने के लिए उन्हें कष्ट ना हो सभी लोग हाथ जोड़ के खड़े हो जाय जिधर राक्षस ईसारा करे जाम्बवंत जी उधर चल दे जाम्बवंत जी का शरीर बड़ा था रास्ता दिखाते दिखाते राक्षस रावण के पास ले गए रावण ने उन्हें प्रणाम खड़े होकर किया और बोला मे आपकी सेवा करता हु राक्षस राज रावण किस लिए आप आए है तो जाम्बवंत ने कहाँ मेरे यजमान एक यज्ञ करना चाहते है में चाहता हु आप उस यज्ञ के आचार्य बन जाय तो रावण ने कहा स्वीकृति से पूर्व मुझे विचार करना पड़ेगा और विचार में देरी लगेगी अगर आप आसन ग्रहण कर लेंगे तो अच्छा होगा मे भी बेठ जाऊँगा जाम्बवंत जी बेठ गये तो रावण ने पूछा आपका यजमान कोन है तो जाम्बवंत ने कहा अयोध्या के राज कुमार और महाराज दशरथ के पुत्र श्री राम मेरे यजमान है वह एक यज्ञ करना चाहते है और भगवान शंकर का विग्रह स्थापित करना चाहते है और शिव लिंग की पूजा करना चाहते है अपने एक बड़े काम के लिए रावण ने पूछा क्या यह बड़ा काम लंका विजय तो नही जाम्बवंत ने कहा आचार्य रावण भी प्रतिभाशाली था उसे पता था क़ोन व्यक्ति आया है मुझे आचार्य बनने के लिए इतना बड़ा अवसर मिल रहा है उसने कहा मे उनके बारे में नही जनता पर हाँ वो दूतों के प्रतिपालक है वे अपने दुत को बहुत अच्छे से रखते है ऐसे मर्यादा वादी यजमान का आचार्य बनना स्वीकार है जाकर कह दीजिए में उनका आचार्य स्वीकार करता हु  यें है रावण जिसके यह सीता माता शील के साथ सुरक्षित रही जाम्बवंत ने रावण से पूछा क्या व्यवस्था करनी पड़ेगी क्या क्या समान मँगवाने पड़ेंगे आचार्य रावण ने कहा चुकी मेरा यजमान वनवासी है और घर से बाहर है इसलिए शास्त्र की परम्परा से अगर यजमान घर से बाहर हो पूजा करनी हो तो सारी चीज़ों की तेयारी स्वयं आचार्य को करनी होती है तो आप कह दीजिए अपने यजमान से सुबह स्नान ध्यान कर के पूजा के लिए तत्पर रहे मे सब समान की व्यवस्था  कर दूँगा अब वह अपने लोगों को बुलाया और बोला कल पूजा के लिए मुझे जाना है यह सब समान तेयार करो। इसके बाद रावण एक रथ लेकर सीता माता के पास गया और सीता से उसने कहा समुद्र पार तुम्हारे पति और मेरे यजमान राम लंका विजय के लिए एक यज्ञ आयोजित किया है और मुझे उस यज्ञ के आचार्य के रूप मे बुलाया है अब जंगल मे रहने वाले किसी भी यजमान की किसी भी पूजा की तेयारी करना आचार्य का काम होता है इसलिए उसकी अर्धांगिनी की भी व्यवस्था करना भी मेरी ज़िम्मेदारी है तो यह रथ खड़ा हुआ है ये पुष्पक विमान है बेठ जाओ पर ध्यान रहे वहाँ भी तुम मेरी सुरक्षा मे हो मेरी ही क़द मे हो और में आचार्य रावण तुमसे ये कहता हु तुम मेरे यजमान की अर्धांगिनी होने के नाते या अर्धयजमान होने के नाते इस पर बेठ जाना कम्बन राम कथा मे एक प्रसंग आता है यह सुनकर माता सीता ने रावण को आचार्य रावण कह कर प्रणाम कियाआप ठीक समझ रहे है यह यज्ञ लंका विजय का यज्ञ है जाम्बवंत ने कहा क्या आप  आचार्य पद स्वीकार करेंगेऔर कहा जो आज्ञा आचार्य और फिर वही रावण माता के प्रणाम करने पर अखण्ड सोभाग्यवती का आशीर्वाद दे डाला  जब वही रावण राम के पास पहुँचा आचार्य बनकर तो दोनो भाइयों ने उन्हें उठकर प्रणाम किया और कहा आचार्य मे आपका यजमान राम आपको प्रणाम करता हूँ में चाहता हूँ यहाँ शिव का विग्रह स्थापित हो ताकी देवधिदेव महादेव मुझे आशीर्वाद दे की में लंका पर विजय प्राप्त करूँ ये शब्द आचार्य रावण से कह रहे रावण ने कहाँ में आपका यज्ञ सम्पादित करूँगा महादेव चाहेंगे आपके यज्ञ का फल आपको प्राप्त होगा रावण ने कहा यज्ञ की तेयारी शुरू करिये तो राम ने बताया हनुमान गए है शंकर  का विग्रह लेने के लिए शिवलिंग लेने के लिए तो राम ने कहाँ हनुमान गये है पता नही ओ साक्षात्  महादेव को लेकर आएँगे या शिवलिंग तो आचार्य रावण ने पूजा मे देरी सम्भव नही है मुहूर्त नही टल सकता आइये बेठिए और आपकी धर्म पत्नी कहाँ है उन्हें बुलाइये तो राम ने कहाँ आचार्य मेरी धर्म पत्नी यहाँ उपस्थित नही है राम केसे कहे इन सब के कारण आप ही है यहाँ राम ने कहाँ कोई ऐसी शास्त्रीय विधी नही है जिससे यह यज्ञ हो जाय तो रावण ने कहाँ यह सम्भव नही हैकेवल तीन प्रकार से इसकी अनुमति है की आप बिदुर हो आपकी धर्म पत्नी न हो या आप अविवाहित है आपका विवाह न हुआ हो और तीसरा आप की पत्नी आपको त्याग दिया हो क्या ये तीनो स्थितिया है राम ने कहा ये तीनो स्थितिया नही है राम केसे कहे इसका कारण आप ही है क्यों की वे तो आचार्य है तो जाम्बवंत ने कहा आचार्य इसकी क्या व्यवस्था है तब रावण ने कहा जब कोई यजमान जंगल मे हो उसके पास यज्ञ को पुरा करने का समस्त साधन न हो तो आचार्य की ज़िम्मेदारी होती है 

की वे यज्ञ का साधन उपस्थित करे या करावे तो आप बिभीषण और अन्य साथी से कहिये मेरे यान मे अर्धयजमान यानी सीता बेठी हुई है उन्हें बुला लाइए ये रामावतार कम्बन रामायण में प्रसंग है उसके बाद विधिवत  

पूजन हुआ माँ सीता ने अपने हाथ से वहाँ शिवलिंग स्थापित किया आज भी लंकेश्वर द्वारा स्थापित कराया गया शिवलिंग वहाँ मौजूद है जिसके बारे मे कहाँ जाता है हनुमान अपना शिवलिंग लेकर आए और बोले इसे हटाओ मे अभी लगाउँगा तो राम ने कहाँ जो लगा है रहने दो तो हनुमान ने कहा महाराज में लेकर आया हु तो राम समझ गए इन्हें थोड़ा सा अपने बल पर अहंकार आ रहा तो राम ने कहा हटा लो और सुनते ही हनुमान ने पुरे बल से शिवलिंग को हटाने की कोशिश की पर वह शिवलिंग नही हटा इसलिए राम ने हनुमान को वरदान दिया यहाँ तुम्हारा शिवलिंग भी यहाँ उपस्थित रहेगा रामेश्वरम में हनुमान जी के द्वारा स्थापित एक शिवलिंग है जो हनुमानेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता है यज्ञ सम्पन हुआ दोनो यजमानो ने यानी राम और सीता ने आचार्य रावण को प्रणाम किया और राम ने पूछा आचार्य आपकी दक्षिणा तो आचार्य रावण ने कहा मुझे पता है आप वनवासी है तो मुझे क्या दक्षिणा दे सकते है मुझे पता है आप के पास मुझे देने के लिए दक्षिणा नही है और स्वर्णमयी लंका के राजा आचार्य को आप क्या दक्षिणा दे सकते है इसलिए मेरी दक्षिणा आप पर उधार रही तो राम संकोच मे पड़ गये राम ने कहाँ तो आप बता दीजिए मे विधिवत तेयार रहु जब में देने योग्य बन पाऊँ आपको तो क्या रावण ने दक्षिणा माँगी तो रावण ने कहाँ आचार्य होने के नाते में आपसे दक्षिणा माँगता हु जब मेरा अंतिम समय आये तो मेरे यजमान मेरे सामने उपस्थित रहे !

                           🌹यह था रावण🌹

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