आज मेरे प्रिय कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म दिन है। वे मनुष्य की भीतरी दुनिया के बड़े कवि थे। अपराध-बोध, आत्मालोचना, आत्म-परिष्कार, संकल्प, भय, साहस आदि भीतरी दुनिया की वस्तुस्थितियों ने उनकी रचनाओं में रूपाकार लिया था। क्यों न उनके कविता वाक्य पढ़ते हुए उनका जन्मदिन मनाया जाए!
ओ मेरे आदर्शवादी मन
ओ मेरे सिद्धांतवादी मन
अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया
उदरंभरि बन अनात्म बन गये
भूतों की शादी में कनात-से तन गये
किसी व्यभिचारी के बन गये बिस्तर
दुखों के दागों को तमगों-सा पहना
अपने ही ख़यालों में दिन-रात रहना,
असंग बुद्धि व अकेले में सहना,
ज़िन्दगी निष्क्रिय बन गई तलघर,
अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया
बताओ तो किस-किस के लिए तुम दौड़ गये
करुणा के दृश्यों से हाय मुंह मोड़ गये
बन गये पत्थर
बहुत-बहुत ज़्यादा लिया
दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश अरे जीवित रह गये तुम!!
-गजानन माधव मुक्तिबोध
13-11-1917---11-09-1964
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