शनिवार, 13 नवंबर 2021

मुक्तिबोध / विनय विश्वास

 आज मेरे प्रिय कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म दिन है। वे मनुष्य की भीतरी दुनिया के बड़े कवि थे। अपराध-बोध, आत्मालोचना, आत्म-परिष्कार, संकल्प, भय, साहस आदि भीतरी दुनिया की वस्तुस्थितियों ने उनकी रचनाओं में रूपाकार लिया था। क्यों न उनके कविता वाक्य पढ़ते हुए उनका जन्मदिन मनाया जाए!

ओ मेरे आदर्शवादी मन

ओ मेरे सिद्धांतवादी मन

अब तक क्या किया

जीवन क्या जिया


उदरंभरि बन अनात्म बन गये

भूतों की शादी में कनात-से तन गये

किसी व्यभिचारी के बन गये बिस्तर


दुखों के दागों को तमगों-सा पहना

अपने ही ख़यालों में दिन-रात रहना,

असंग बुद्धि व अकेले में सहना,

ज़िन्दगी निष्क्रिय बन गई तलघर,


अब तक क्या किया

जीवन क्या जिया


बताओ तो किस-किस के लिए तुम दौड़ गये

करुणा के दृश्यों से हाय मुंह मोड़ गये

बन गये पत्थर


बहुत-बहुत ज़्यादा लिया

दिया बहुत-बहुत कम

मर गया देश अरे जीवित रह गये तुम!! 

-गजानन माधव मुक्तिबोध 

13-11-1917---11-09-1964

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