मंगलवार, 2 नवंबर 2021

धनतेरस_का_उपहार/ ऋषभ देव शर्मा

 

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'समकालीन साहित्य विमर्श' की लेखिका गुरंगकोंडा नीरजा से मेरी पहली भेंट हैदराबाद में ही दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की एक गोष्ठी के दौरान हुई थी। तत्पश्चात 'स्रवंति' की संपादिका के रूप में भी उनके उत्कट हिंदी अनुराग तथा साहित्यिक संवेदना और समझ का बड़ा प्रीतिकर और पुख्ता प्रमाण मिलता रहा। तेलुगु साहित्य की जितनी जैसी जानकारी मुझे है, उसका भी काफी कुछ श्रेय नीरजा को ही जाता है - उनकी लिखी उस पुस्तक के निमित्त से, जो उन्होंने मुझे भेंट की थी। उसी तरह यह पुस्तक भी अपने ढंग की निराली है क्योंकि इसकी शुरूआत ही 'हरित विमर्श' से - पर्यावरण की गहरी चिंता से - होती है। दूसरा खंड भी एक ऐसी दुनिया से हमारी संवेदना का घनिष्ठ परिचय कराता है, जो हमारे लिए लगभग अपरिचित या अत्यल्प परिचित ही रहा है। 'किन्नर विमर्श' नामक इस खंड में पाठक को सर्वथा अपूर्वानुमेय किंतु अत्यंत आत्मीय और गहरी संवेदना के साथ खोजी और प्रस्तुत की गई सामग्री मिलती है।...

- (पद्मश्री) रमेश चंद्र शाह, भोपाल

(शुभाशंसा, पृष्ठ 7)


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... एक विशेषता यह भी देखी जा सकती है कि लेखिका का चिंतन, परंपरा से कट कर नहीं हुआ है। वे अपने वर्तमान या समकाल पर चिंतन करते हुए प्राचीन और मध्यकाल की सोच और स्थितियों को भी समक्ष रख कर चलती हैं। साथ ही अन्य चिंतकों के मतों को भी सामने रखा है। अच्छी बात यह भी लगेगी कि

लेखिका ने अपनी साहित्यिक खोज को केवल तथाकथित मशहूर हस्तियों तक सीमित नहीं रखा है। उनके साथ-साथ कम चर्चित रचनाकारों की ओर भी उनका ध्यान गया है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह कृति साहित्यिक विमर्शों को उनके संपूर्ण और सही परिप्रेक्ष्य में जानने और समझने में पूरी तरह सक्षम है। पाठकों का ध्यान और अपनापन इस कृति को अवश्य मिलेगा, ऐसा विश्वास है।

- दिविक रमेश, नोएडा

(भूमिका, पृष्ठ 11)


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'समकालीन साहित्य विमर्श' शीर्षक इस पुस्तक में कुल 5 खंड हैं - हरित विमर्श, किन्नर विमर्श, स्त्री विमर्श, लघुकथा विमर्श और विमर्श विविधा। कुल मिलाकर यह 24 आलेखों का समुच्चय है। कहना होगा कि ये आलेख 2008 से लेकर 2020 तक की अवधि में अलग अलग संदर्भ में लिखे गए हैं। लेकिन इन सभी में अध्येता के सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषिक मुद्दों पर विशेष आग्रह को आप अवश्य महसूस कर सकेंगे।

- डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, हैदराबाद 

(आभार, पृष्ठ 13)


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#समकालीन_साहित्य_विमर्श, डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा, 2021, दिल्ली: सुबोध प्रकाशन/ अनंग प्रकाशन (anangprakashan@gmail.com

#9350563707)

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