बुधवार, 17 नवंबर 2021

रवि अरोड़ा की नजर से...

 प्रतिनायकवाद /रवि अरोड़ा



हर साल की तरह इस साल भी नाथू राम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी दिए जाने वाले दिन यानि 15 नवंबर को उनके कसीदे पढ़ने वाले बहुत से मैसेज आए । नया यह रहा कि इस बार यह मुहिम वाट्स एप के बजाय फेसबुक पर कुछ अधिक आक्रामक दिखी । हिंदुत्व और जय मां भारती जैसे कुछ अनजान फेसबुक पेजों द्वारा मुझे भी इस कथित शहीदी दिवस पर शुभकामनाएं दीं गईं और महात्मा गांधी के इन हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी और महान देशभक्त बताते हुए श्रद्धांजली दी गई । कहना न होगा कि मैं ऐसे किसी ग्रुप का सदस्य नहीं हूं और न ही मैंने आजतक उनके फेसबुक पेज को कभी देखा अथवा लाइक किया है । सात साल की फेसबुक सक्रियता में मेरा कोई रूझान भी इस हत्यारों की पक्षधरता वाला नहीं रहा । फिर किस ने मुझे ये मैसेज भेजे ? गौर से देखा तो पता चला कि फेसबुक ने सजस्टिड फॉर यू के टैग के साथ मुझे ये मैसेज भेजे थे । मगर मुझे ऐसा सजेशन फेसबुक ने भला क्यों दिया ? मेरी पसंद नापसंद का रिकॉर्ड यदि उसके पास है तो उसने कभी मुझे महात्मा गांधी पर लिखे गए हजारों लाखों लेखों में से किसी एक का भी सजेशन क्यों नही दिया ? इन पेजों पर हजारों हजार लाइक और शेयर बता रहे हैं कि इस पेजों का सजेशन मेरी तरह देश भर में आम नागरिकों को दिया गया होगा और हो न हो यह भी किसी खास आई टी सेल का कमाल होगा । मगर ये आई टी सेल किसका हो सकता है ? हिंदू महासभा का तो अब ग्वालियर के चंद लोगों के अलावा कोई नाम लेवा नहीं है , भाजपा और संघ सार्वजनिक रूप से गांधी की हत्या की निंदा करते हैं , फिर कौन है जो यह खेल कर रहा है ? क्या यह फिर वही मुंह में राम और बगल में छुरी जैसा कुछ है ? 


खबर है कि इस बार 15 को महात्मा गांधी के हत्यारों का एक मंदिर भी मेरठ में बन गया है । इससे पहले ग्वालियर में भी ऐसा किया गया था । देश प्रदेश की सरकारों के मंत्री मुख्यमंत्री और बड़े बड़े ओहदेदार अक्सर इस हत्यारों का गुणगान करते ही रहते हैं । गोडसे की मूर्ति को नमन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर भी कुछ साल पहले वायरल हुई थी । हालांकि गांधी विरोधी ताकतें आजादी के पहले से ही सक्रिय रही हैं मगर पिछले कुछ सालों से तोपों के मुंह गांधी की बजाय नेहरू की ओर मोड़ दिए गए थे । चूंकि गांधी के समकक्ष कोई आदमी इन ताकतों के पास नहीं था अतः मुकाबला नेहरू बनाम मोदी करने की कोशिश की गई । मगर  इस मुकाबले में भी हारने के बाद फिर वही पुराना खेल यानि गांधी बनाम गोडसे शुरू किया जा रहा है । 15 नवंबर की इस बार की आक्रमकता इसी बात का सबूत है । ये ताकतें कितनी कामयाब होंगी यह तो मुझे नहीं पता । मगर इतना जरूर पता है कि दुनिया भर में आज भी ऐसे करोड़ों लोग हैं जो भारत को बेशक न जानते हों मगर महात्मा गांधी और उनके विचारों को जरूर जानते हैं । विदेशी दौरे पर गए हमारे मंत्री प्रधानमंत्री के स्वागत में विदेशी नेता भी जब कोई कसीदा पढ़ते हैं तो शुरुआत यहीं से करते हैं कि ये उस देश से आए हैं जहां महात्मा गांधी रहते थे । आज बेशक देश दुनिया में प्रतिनायकवाद की हवाएं हैं मगर फिर भी जमीनी हकीकत तो यही है इन विघ्नसंतोषियों के अतिरिक्त गोडसे और आप्टे जैसों के नाम लेवा दूर दूर तक नज़र नहीं आते ।


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