रविवार, 28 नवंबर 2021

"जीवन के यथार्थ से रूबरू कराती यायावर की कविताएं" प्रख्यात साहित्यकार, कवि, आलोचक, समीक्षक व संपादक भारत यायावर की कविताएं जीवन के यथार्थ से रूबरू कराती हैं और जन सरोकारों एवं मानवीय संबंधों को भी मजबूती प्रदान करती हैं। अब तक उनकी संपादित, आलोचना एवं कविता की 65 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । यायावर ने गद्य - पद्य दोनों विधा पर काफी काम किया है । जहां तक मैं उनकी रचनाओं को पढ़ पाया हूं , ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों विधा में लिखने में पारंगत हैं। उन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और फणीश्वर नाथ रेनू की देशभर में बिखरी पड़ी असंकलित रचनाओं को संकलित और संपादन कर एक महान कार्य किया है। उनकी रचनाएं पिछले 40 वर्षों से लगातार देशभर के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होती चली आ रही हैं । उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा है, लेकिन उनकी कलम कभी ना रुकी। साहित्य के प्रति उनका यह लगाव बचपन से ही रहा है । छात्र जीवन में ही उन्हें कई पत्रिकाओं के संपादन करने का अवसर प्राप्त हुआ । उन्होंने इस दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ पूरा किया और वे शत-प्रतिशत सफल हुए। तब के देश के नामचीन साहित्यकारों ने उन्हें प्रशंसा के कई पत्र भेजे थे। नागार्जुन ने भविष्यवाणी की थी कि भारत यायावर आगे चलकर हिंदी साहित्य जगत में बड़ा काम करेगा और जनकवि नागार्जुन की भविष्यवाणी सच साबित हुई जहां तक मैं भारत यायावर की रचनाओं को पढ़कर समझ पाया हूं। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधा पर समान रूप से काम जरूर किया है किंतु उनकी आत्मा कविताओं में बसती है । उनकी कविताओं की खासियत यह है कि पाठकों को उलझाती नहीं है ,बल्कि बड़े ही सहजता के साथ अपनी बात संप्रेषित कर देती हैं । यायावर की कविताएं जीवन के संघर्ष से सहर्ष मुकाबला करने की सीख देती है। संघर्ष मुकाबला के साथ प्रेम करने की भी बात बताती हैं । विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए हर मनुष्य संघर्ष जरूर करता है , परंतु जीत उसी की होती है जो जीवन के संघर्ष से मुकाबला करते हैं और उससे प्रेम करते हैं। जन सरोकारों से जुड़े सभी पक्षों पर पूरी गंभीरता के साथ यायावर अपनी बात रखते हैं । वे मानवीय संबंधों को बेहतर से बेहतर बनाने की बात अपनी कविताओं के माध्यम से कहते हैं। मानवीय संबंध ही मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है। समाज और देश की मजबूती के लिए मानवीय संबंध आधार स्तंभ है। यायावर की कविताओं में सकारात्मकता की जबरदस्त पुट मिलती है । उनकी कविताएं समाज को देखने के लिए एक नूतन दृष्टि प्रदान करती है। पिछले दिनों जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार व कवि गणेश चंद्र राही ने भारत यायावर के तीन कविता संग्रह से 52 कविताओं का चयन कर "तुम धरती का नमक हो" शीर्षक से कविता संग्रह का संपादन किया । इस संग्रह के संपादक कवि गणेश चंद्रा ही ने भूमिका में दर्ज किया है कि "मैं चाह रहा था कि इस संकलन में भारत यायावर की महत्वपूर्ण कविताओं को शामिल करें , लेकिन स्वयं कवि होने के नाते इस कठिनाई को महसूस कर सकता हूं कि किस कविता को महत्वपूर्ण कहूं और किसे कम महत्वपूर्ण । यह किसी भी चयनकर्ता के लिए द्वंद्वात्मक स्थिति है और इससे बाहर निकलने के लिए कविता जैसी कोमल हृदय वाली विधा के साथ कठोरता बरतना आत्महत्या करने जैसी बात हो जाती है । भारत यायावर की हर कविता हमें बांधती है। प्रेम और करुणा जीवन के व्यापक क्षेत्र का दर्शन कराती हैं "।राही जी ने अपनी चंद पंक्तियों में स्पष्ट कर दिया है कि भारत यायावर की किस कविता को महत्वपूर्ण कहूं, किसे कम महत्वपूर्ण कहूं? यही यायावर की कविताओं की सच्चाई व यथार्थ है। उनकी हर एक कविता समाज के वृहद क्षेत्र की घटनाओं को स्पर्श करती हैं और प्रभावित भी करती हैं। भारत यायावर की कविता एक और गिरते रिश्तो पर जोरदार प्रहार करती हैं तो दूसरी ओर रिश्तों की अहमियत की भी सीख देती है। "तुम धरती का नमक हो" शीर्षक कविता में कवि भारत यायावर ने दर्ज किया है, " तुम धरती का नमक हो/ सभी को है तुम्हारी जरूरत/ एक ही तरह/ तुम धरती का जल हो तरल/ किसी आदमी रंग भाषा देश से/ नहीं बरते अलग अलग/ अलग अलग करने की ख्वाहिश नहीं है तुम्हारी",.. यायावर अपनी इस कविता के माध्यम से बिल्कुल साधारण सी दिखने वाली वस्तु नमक को प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर बड़ी बात कहने की कोशिश की है ।नमक एक साधारण वस्तु जरूर है , किंतु अत्यंत से अत्यंत साधारण व्यक्ति से लेकर बड़े से बड़े व्यक्ति के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। आगे कविता में दर्ज है,.." तुम हवा हो - प्रभावित /कौन जीत सकता है तुम्हारे बिना/ तुम वह सब हो / जो पूरी मानवता के लिए जरूरी है / मनुष्य जिसके बगैर नहीं हो सकता / जो तमाम मनुष्यों को एक करता है / इसीलिए तुम्हारे ही साथ जाता हूं,".. साधारण सा दिखने वाला यह नमक मनुष्य को मनुष्य से जोड़ रहा है । समाज के हर वर्ग के लोगों से समान रूप से प्रेम कर रहा है । कहीं पक्षपात नहीं । कोई घृणा के स्वर नहीं। नमक सभी को समान रुप से अंगीकार कर रहा है। नमक के माध्यम से कवि समाज के हर वर्ग के लोगों से प्रश्न करते नजर आते हैं कि मनुष्य मनुष्य दूर क्यों होता चला जा रहा है? पक्षपात और घृणा ने मनुष्य को लहूलुहान कर दिया है । कवि लोगों से आह्वान करते हैं कि तुम सब नमक की तरह उदात्त बनो और सबसे समान रूप से प्रेम करो। इससे जीवन की दिशा और दशा दोनों सु मधुर हो जाएगी। इस संग्रह में "रचना प्रक्रिया", "कितनी सड़कों पर कितने लोग", "ऐसा कुछ भी न था", "आदमी कहां-कहां पीड़ित नहीं है", "हाल बेहाल", "मैं हूं यहां हूं", ,हम जीवन से प्यार करते हैं"... सहित 52 कविताएं दर्ज है । हर कविता कुछ न कुछ नई बात कहने में पूरी तरह सफल होती है। कभी पुरानी व घीसीपीटी बातों को दोहराना नहीं चाहते हैं ।जहां वे रहते है। आस-पास हो रहे हलचलो को देखते हैं , विचार करते हैं तब वे कुछ गढतें हैं । कवि अपनी कविताओं से कभी दुखी नजर नहीं होते हैं और ना ही मन भारी कर बात बताने की कोशिश करते हैं । हताश भी नजर नहीं आते हैं, बल्कि पूरी शक्ति के साथ उठ खड़े होने की बात कहते हैं। निराशा को आशा में बदलने की बात कहते हैं। मरने नहीं जीने की बात बताते हैं । "कितने सड़कों पर कितने लोग".. सिर्फ कविता की चंद पंक्तियों के इर्द गिर्द सारा हिंदुस्तान घूमता नजर आता है । "अब क्या होगा ?"/ बहुत थोड़ी जमा पूंजी थी / और वह भी चूक गई थी/ खाली पेट मैं घर से निकलता/ और बिना कुछ पाए लौटा आता / अब क्या होगा ?" आज जहां भी नजरें दौड़ा ले, ... कमोबेश हालात एक समान है । कवि देशवासियों से ऐसी परिस्थिति से मुकाबला करने की बात करते हैं। उससे जूझने और परास्त करने की भी राह सुझातें हैं। कवि को पक्का विश्वास है कि एक न एक दिन यह विकट परिस्थिति को अनुकूल परिस्थिति में बदलना ही पड़ेगा। इसी कविता की अंतिम पंक्तियां हैं , " हाहाकार भरे जीवन से/ मैंने अपनी शुरुआत की / और आज जो हूं / जिंदा या मुर्दा / आपके सामने हूं। यायावर किया सकारात्मकता भरी बातें उन्हें विशिष्टता प्रदान करती है।

 "जीवन के यथार्थ से रूबरू कराती यायावर की कविताएं"/ ija


 प्रख्यात साहित्यकार, कवि, आलोचक, समीक्षक व संपादक भारत यायावर की कविताएं जीवन के यथार्थ से रूबरू कराती हैं और जन सरोकारों एवं मानवीय संबंधों को भी मजबूती प्रदान करती हैं। अब तक उनकी संपादित, आलोचना एवं कविता की 65 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । यायावर ने गद्य - पद्य दोनों विधा पर काफी काम किया है । जहां तक मैं उनकी रचनाओं को पढ़ पाया हूं , ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों विधा में लिखने में पारंगत हैं।  उन्होंने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी और फणीश्वर नाथ रेनू की देशभर में बिखरी पड़ी असंकलित रचनाओं को संकलित और संपादन कर एक महान कार्य किया है।  उनकी रचनाएं पिछले 40 वर्षों से लगातार देशभर के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होती चली आ रही हैं । उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा है, लेकिन उनकी कलम कभी ना रुकी।  साहित्य के प्रति उनका यह लगाव बचपन से ही रहा है । छात्र जीवन में ही उन्हें कई पत्रिकाओं के संपादन करने का अवसर प्राप्त हुआ । उन्होंने इस दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ पूरा किया और वे शत-प्रतिशत सफल हुए।  तब के देश के नामचीन साहित्यकारों ने उन्हें प्रशंसा के कई पत्र भेजे थे।  नागार्जुन ने भविष्यवाणी की थी कि भारत यायावर आगे चलकर हिंदी साहित्य जगत में बड़ा काम करेगा और जनकवि नागार्जुन की भविष्यवाणी सच साबित हुई


जहां तक मैं भारत यायावर की रचनाओं को पढ़कर समझ पाया हूं।  उन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधा पर समान रूप से काम जरूर किया है किंतु उनकी आत्मा कविताओं में बसती है । उनकी कविताओं की खासियत यह है कि पाठकों को उलझाती नहीं है ,बल्कि बड़े ही सहजता के साथ अपनी बात संप्रेषित कर देती हैं । यायावर की कविताएं जीवन के संघर्ष से सहर्ष  मुकाबला करने की सीख देती है। संघर्ष मुकाबला के साथ प्रेम करने की भी बात बताती हैं । विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए हर मनुष्य संघर्ष जरूर करता है , परंतु जीत उसी की होती है जो जीवन के संघर्ष से मुकाबला करते हैं और उससे प्रेम करते हैं।  जन सरोकारों से जुड़े सभी पक्षों पर पूरी गंभीरता के साथ यायावर अपनी बात रखते हैं । वे मानवीय संबंधों को बेहतर से बेहतर बनाने की बात अपनी कविताओं के माध्यम से कहते हैं। मानवीय संबंध ही मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है।  समाज और देश की मजबूती के लिए मानवीय संबंध आधार स्तंभ है।  यायावर की कविताओं में सकारात्मकता की जबरदस्त पुट मिलती है । उनकी कविताएं समाज को देखने के लिए एक नूतन दृष्टि प्रदान करती है।


 पिछले दिनों जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार व कवि गणेश चंद्र राही ने भारत यायावर के तीन कविता संग्रह से 52 कविताओं का चयन कर "तुम धरती का नमक हो" शीर्षक से कविता संग्रह का संपादन किया । इस संग्रह के संपादक कवि गणेश चंद्रा ही ने भूमिका में दर्ज किया है कि "मैं चाह रहा था कि इस संकलन में भारत यायावर की महत्वपूर्ण कविताओं को शामिल करें , लेकिन स्वयं कवि होने के नाते इस कठिनाई को महसूस कर सकता हूं कि किस कविता को महत्वपूर्ण कहूं और किसे कम महत्वपूर्ण ।  यह किसी भी चयनकर्ता के लिए द्वंद्वात्मक स्थिति है और इससे बाहर निकलने के लिए कविता जैसी कोमल हृदय वाली विधा के साथ कठोरता बरतना आत्महत्या करने जैसी बात हो जाती है । भारत यायावर की हर कविता हमें बांधती है।  प्रेम और करुणा जीवन के व्यापक क्षेत्र का दर्शन कराती हैं "।राही जी ने अपनी चंद पंक्तियों में स्पष्ट कर दिया है कि भारत यायावर की किस कविता को महत्वपूर्ण कहूं,  किसे कम महत्वपूर्ण  कहूं? यही यायावर की कविताओं की सच्चाई व यथार्थ है। उनकी हर एक कविता समाज के वृहद क्षेत्र की घटनाओं को स्पर्श करती हैं और प्रभावित भी करती हैं। भारत यायावर की कविता एक और गिरते रिश्तो पर जोरदार प्रहार करती हैं तो दूसरी ओर रिश्तों की अहमियत की भी सीख देती है।

"तुम धरती का नमक हो"  शीर्षक कविता में कवि भारत यायावर ने दर्ज किया है, " तुम धरती का नमक हो/ सभी को है तुम्हारी जरूरत/ एक ही तरह/ तुम धरती का जल हो तरल/ किसी आदमी रंग भाषा देश से/ नहीं बरते अलग अलग/ अलग अलग करने की ख्वाहिश नहीं है तुम्हारी",.. यायावर अपनी इस कविता के माध्यम से बिल्कुल साधारण सी दिखने वाली वस्तु नमक को प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर बड़ी बात कहने की कोशिश की है ।नमक एक साधारण वस्तु जरूर है , किंतु अत्यंत से अत्यंत साधारण व्यक्ति से लेकर बड़े से बड़े व्यक्ति के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। आगे कविता में दर्ज है,.." तुम हवा हो - प्रभावित /कौन जीत सकता है तुम्हारे बिना/ तुम वह सब हो / जो पूरी मानवता के लिए जरूरी है / मनुष्य जिसके बगैर नहीं हो सकता / जो तमाम मनुष्यों को एक करता है / इसीलिए तुम्हारे ही साथ जाता हूं,".. साधारण सा दिखने वाला यह नमक मनुष्य को मनुष्य से जोड़ रहा है । समाज के हर वर्ग के लोगों से समान रूप से प्रेम कर रहा है । कहीं पक्षपात नहीं । कोई घृणा के स्वर नहीं।  नमक सभी को समान रुप से अंगीकार कर रहा है।  नमक के माध्यम से कवि समाज के हर वर्ग के लोगों से प्रश्न करते नजर आते हैं कि मनुष्य मनुष्य दूर क्यों होता चला जा रहा है?  पक्षपात और घृणा ने मनुष्य को लहूलुहान कर दिया है । कवि लोगों से आह्वान करते हैं कि तुम सब नमक की तरह उदात्त बनो और सबसे समान रूप से प्रेम करो। इससे जीवन की दिशा और दशा दोनों सु मधुर हो जाएगी।


 इस संग्रह में "रचना प्रक्रिया",  "कितनी सड़कों पर कितने लोग",  "ऐसा कुछ भी न था",  "आदमी कहां-कहां पीड़ित नहीं है",  "हाल बेहाल",  "मैं हूं यहां हूं",  ,हम जीवन से प्यार करते हैं"... सहित 52 कविताएं दर्ज है । हर कविता कुछ न कुछ नई बात कहने में पूरी तरह सफल होती है।  कभी पुरानी व घीसीपीटी बातों को दोहराना नहीं चाहते हैं ।जहां वे रहते है।  आस-पास हो रहे हलचलो को देखते हैं , विचार करते हैं तब वे कुछ गढतें हैं । कवि अपनी कविताओं से कभी दुखी नजर नहीं होते हैं और ना ही मन भारी कर बात बताने की कोशिश करते हैं । हताश भी नजर नहीं आते हैं, बल्कि पूरी शक्ति के साथ उठ खड़े होने की बात कहते हैं। निराशा को आशा में बदलने की बात कहते हैं।  मरने नहीं जीने की बात बताते हैं । "कितने सड़कों पर कितने लोग".. सिर्फ कविता की चंद पंक्तियों के इर्द गिर्द सारा हिंदुस्तान घूमता नजर आता है । "अब क्या होगा ?"/ बहुत थोड़ी जमा पूंजी थी / और वह भी चूक गई थी/  खाली पेट मैं घर से निकलता/  और बिना कुछ पाए लौटा आता / अब क्या होगा ?"  आज जहां भी नजरें दौड़ा ले, ... कमोबेश हालात एक समान है । कवि देशवासियों से ऐसी परिस्थिति से मुकाबला करने की बात करते हैं।  उससे जूझने और परास्त करने की भी राह सुझातें हैं। कवि को पक्का विश्वास है कि एक न एक दिन यह विकट परिस्थिति को अनुकूल परिस्थिति में बदलना ही पड़ेगा।  इसी कविता की अंतिम पंक्तियां हैं , " हाहाकार भरे जीवन से/  मैंने अपनी शुरुआत की / और आज जो हूं / जिंदा या मुर्दा / आपके सामने हूं। यायावर किया सकारात्मकता भरी बातें उन्हें विशिष्टता प्रदान करती है।

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