शनिवार, 6 नवंबर 2021

नागफनी का उद्भ्रान्त विशेषांक

 चर्चित त्रैमासिक 'नागफनी' के प्रधान संपादक प्रोफ़ेसर बलिराम धापसे ने सूचित किया है कि पत्रिका का जुलाई-सितम्बर 2021 का "उद्भ्रान्त विशेषांक" पत्रिका की वेबसाइट पर जारी कर दिया गया है और हार्ड प्रतियाँ 10 नवम्बर के बाद पत्रिका के सदस्यों और सहयोगी लेखकों को भेज दी जाएंगी। मैं भी प्रतीक्षा में हूँ।

     हालाँकि मेरी 3 कृतियों 'ब्लैकहोल','शहर-दर-शहर उमड़ती है नदी'(उद्भ्रान्त के संस्मरण) और 'रुद्रावतार' पर दिनेश कुमार माली की आलोचना कृति 'मिथकीय सीमाओं से परे रुद्रावतार' के रूप में 'पहल' और 'मंतव्य' ने विशेषांक निकाले और 'समावर्तन' ने कुछ वर्ष पूर्व "एकाग्र" खण्ड भी निकाला,लेकिन व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित किसी पत्रिका का यह पहला विशेषांक है--वह भी अहिंदीभाषी क्षेत्र से! 

      हिंदी पट्टी की पत्रिकाओं के सम्पादक तो किसी लेखक पर विशेषांक तभी निकालते हैं जब उन्हें अपना गुणा-भाग हर तरह से ठीक,चुस्त-दुरुस्त और लाभकारी लगता है! फिर चाहे लेखक कितना ही बड़ा और महत्वपूर्ण हो या दिवंगत हो चुका हो! 

       इस राजनीति के कुशल खिलाड़ी वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों विचारधाराओं में मिलते हैं तो दोनों से इतर अशोक वाजपेयी जैसे निर्गुण सम्प्रदाय वाले भी हैं, जो रज़ा फाउंडेशन और कृष्णा सोबती न्यास के बल पर इसका सफलतापूर्वक इस तरह क्रियान्वयन करते हैं कि वाम और दक्षिण--दोनों उनके पीछे पुरस्कारादि की भिक्षा-प्राप्ति के लिए भी भागते नज़र आते हैं और एक वाम-दृष्टिधारी पत्रिका का 500 पृष्ठों का विशेषांक ही शाया हो जाता है! ऐसे साहित्यिक सत्ताधीशों  का ध्यान जोड़तोड़ की राजनीति से दूर रहने वाले, एकांत साधना में निमग्न,आधा दर्जन से अधिक प्रबंध काव्यों के रचयिता शताधिक कृतियों के किसी मामूली सर्जक की ओर क्यों जाएगा! वे फेसबुक जैसे मंच पर भी अपना रणनीतिक मौन धारण किये रहते हैं।अलग बात है कि ऐसी दुरभिसंधियों में रुचि न रखने वाले हिंदी के सजग पाठकों की विशाल संख्या के आगे वे अपनी हेय साज़िशों को उजागर करते श्रीहीन और बेपर्दा हो जाते हैं।

        तब शायद 'पोएटिक जस्टिस' के द्वारा संतुलन क़ायम करने के लिए ही अहिंदीभाषी क्षेत्र का यह उपक्रम सम्भव हुआ। प्रसन्नता की बात है कि सहयोगी लेखकों में कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं के संपादक भी हैं,वरिष्ठ आलोचक हैं,कवि हैं,कहानीकार हैं,उपन्यासकार हैं,नाटककार हैं,निबंधलेखक हैं,पत्रकार हैं,भूतपूर्व सहकर्मी हैं,मीडियाकर्मी हैं और सुधी पाठक हैं जिन्हें ऐसी तुच्छ राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं ।मैं उन सबके प्रति हृदय से कृतघ्य हूँ। 

       पत्रिका अभी देखी नहीं इसलिए उसकी सामग्री के बारे में अधिक नहीं जानता।विश्वास है धापसे जी ने अपने कुशल संपादन से अच्छा संयोजन किया होगा। डबल डिमाई आकार('हंस'-साइज़) के 160 पृष्ठों का अंक जल्दी ही आप तक पहुँचेगा और मुझे आप सबकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा।

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