मंगलवार, 9 नवंबर 2021

सूर्य की उपासना के मायने / विजय केसरी

 'सूर्य की उपासना से मिलती है जीवनी शक्ति' 


      सूर्य की उपासना अनंत काल से ही चली आ रही है । सूर्य साक्षात देव के रूप में संपूर्ण विश्व भर में प्रतिष्ठित हैं। यही कारण है कि इनकी उपासना अनंत काल तक बनी  रहेगी। दुनिया के लगभग सभी धार्मिक पुस्तकों में सूर्य की महता की चर्चा की गई है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार  सूर्य को प्रत्यक्ष देव कहा गया है। वैज्ञानिकों ने अपने शोधों में प्रमाणित किया है कि सूर्य की उपासना से जीवनी शक्ति मिलती है।  इनके भक्तों के समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। सूर्य की उपासना आदि काल से लोग करते चले आ रहे हैं।  लगभग लोग सूरज को प्रणाम करते हैं। सूर्य के बिना पृथ्वी की कल्पना नहीं की जा सकती है । सूर्य की किरणों में जीवन को दीर्घायु  बनाने वाले तत्व विद्यमान है।  ब्रह्मांड की उत्पत्ति का इतिहास बहुत ही रोचक है। देवी पुराण में वर्णन है कि जब सृष्टि में कुछ भी नहीं था , चारों ओर अंधकार ही अंधकार व्याप्त था, तब भी एक शक्ति संपूर्ण ब्रहमांड को स्वयं में एक शून्य में समाहित की हुई थी।  संपूर्ण ब्रहमांड का आकार प्रकार आज भी वैज्ञानिकों एवं खगोल शास्त्रियों के लिए एक यक्ष प्रश्न के समान खड़ा है। वैज्ञानिक ब्रह्मांड के रहस्य को सुलझाने के लिए जितने भी करीब पहुंचते हैं, फिर कई अनगिनत अनसुलझे सवाल खड़े हो जाते।


आगे देवी पुराण  ने स्पष्ट किया है कि आदिशक्ति के हास्य मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना हुई थी ।आदि शक्ति स्वरूपा जगत जननी माता का निवास स्थान सूर्य के केंद्र में  है। सूर्य के केंद्र में रहने की क्षमता सिर्फ आदि स्वरूपा माता को ही हैं।  सूर्य की आराधना उपासना से उनके भक्तों को आदि स्वरूपा माता की भी कृपा प्राप्त होती है।  जब जब सृष्टि पर दैत्यों के अत्याचार बड़े थे, तब देवताओं ने सूर्य की उपासना की थी।  सूर्य के प्रकट होते ही उसके प्रचंड ताप को भी अत्याचारी सहन नहीं कर पाए थे।  देवासुर संग्राम में जब माता पार्वती ने पुत्र कार्तिके को  युद्ध में भेजा था, तब उन्होंने सूर्य की उपासना की थी।  इस युद्ध में कार्तिके विजयी हुए  थे। माता पार्वती ने डूबते  सूरज को देख कर आभार प्रकट की थी।


सूर्य रहस्यम में ऐसा वर्णन मिलता है कि सर्वप्रथम माता पार्वती ने सूर्य की उपासना की थी द्वापर त्रेता सज्जू अर्थात तीनों कालों में देवताओं और मनुष्यों ने प्रत्येक सदैव सूर्य की उपासना की थी वर्णन कई बार  असाध्य रोग उत्पन्न होने पर उन्होंने भगवान सूर्य की उपासना की थी । सूर्य की उपासना से देवताओं के सभी रोग संताप दूर हो गए थे।


सूर्य की उपासना व आराधना सच्चे अर्थों में माता की ही उपासना है। सूर्य के अंदर विद्यमान शक्ति माता की शक्ति ही है ।जब से सृष्टि अस्तित्व में आई तब से सूर्य की उपासना के प्रमाण मिलते हैं । सूर्य उपासना का सबसे बड़ा पर्व सूर्य षष्ठी, छठ पर्व  है।भारतवर्ष के लगभग राज्यों में छठ पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है । भारत से विदेश में बसे अप्रवासी भारतीय भी छत पर वहां बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं । बिहार और उत्तर प्रदेश का छठ पर्व की बात ही निराली है। यह निर्विवाद सत्य है कि बिहार से छठ पर्व झारखंड में प्रवेश किया । 4 दिनों तक चलने वाला यह पर्व बिल्कुल ही अनूठा पर्व है । इस पर्व में पर पवित्रता का बड़ा ख्याल रखा जाता है।  ऋतु फल और भगवान सूर्य को अर्पित किए जाते हैं । डूबते सूर्य को इनके भक्त दूध एवं जल से अर्घ्य अर्पित करते हैं। छठ पर्व के प्रति लोगों में अपार आस्था है । सूर्य की उपासना से सब की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

 छठ पर्व के दूसरे दिन को आंचलिक बोलचाल की भाषा में पारन दिन कहा जाता है। इस दिन छठ व्रतधारी उगते सूर्य की उपासना और आराधना करते हैं। इनके उपासक, भक्त और व्रतधारी सूर्य को अर्घ्य के माध्यम से जल व दूध अर्पित करते हैं । अर्घ्य अर्पित करने से पूर्व इनके व्रतधारी  स्वयं को जल में आधा डूबा कर भगवान सूर्य की विशेष आराधना करते हैं।  व्रतधारियों के मन में तरह-तरह की मनोकामनाएं होती है।  वे सभी अपने -अपने आराधना के क्रम में मन की बातें प्रत्येक देव सूर्य से कहते हैं । भगवान भास्कर के व्रतधारियों  के मन में यह पक्का विश्वास रहता है कि उनकी बातें सूर्यदेव जरूर सुनेंगे और मनोकामनाएं पूर्ण भी करेंगे। इस पर्व के प्रति लोगों की बढ़ती आस्था यह बताती है कि निश्चित रूप से इनके व्रतधारियों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

     सूर्य षष्टि (छठ पर्व) के व्रतधारी संध्या में डूबते सूरज को अर्घ्य अर्पित करते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार डूबते और उगते सूरज की उपासना व आराधना की महत्ता बताई गई है। छठ पर्व की शुरुआत डूबते सूरज को अर्घ्य अर्पित करने से होती है । इस पर्व का समापन व पारन उगते सूरज को अर्घ्य अर्पित करने से होता है । उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते के पश्चात  ही उनके व्रतधारी भगवान भास्कर की विशेष पूजा कर प्रसाद ग्रहण करते हैं । महिला और व्रतधारी को परवैतीन इनके नाम से पुकारा जाता है । पुरुष व्रतधारी को व्रतधारी के नाम से ही पुकारा जाता है ।इस पर्व को स्त्री पुरुष दोनों ही करते हैं । पुरुष की तुलना में स्त्रियां ही इस पर्व को ज्यादा करती हैं । 

     छठ पर्व के दो महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु है।  प्रथम डूबते  और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना।  दोनों अर्घ्य में सूर्य की उपस्थिति आवश्यक है।  इस पर्व की तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि व्रतधारी  आधा व थोड़ा जल मे डूबकर ही  ही भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं।  इस पर्व पर बांस के सूप, ऋतु फल, आटा - गुड़ मिश्रित ठेकुआ आदि का जुड़ाव समय के साथ होता गया था। धीरे-धीरे ये सारी चीजें छठ पर्व की पहचान बनती चली गई । बाद के कालखंड में जैसे-जैसे इनके व्रतधारियों की मनोकामनाएं पूर्ण होती गई, सोना, चांदी और पीतल के बने सूप पर फल, ठेकुआ रखकर अर्घ्य देने जैसी प्रथा की शुरुआत हुई थी ।

      इस पर्व की बढ़ती लोकप्रियता का यह आलम है कि गीतकारों की कलम खुद-ब-खुद चल पड़ी।  हजारों की संख्या में अब तक छठ पर्व पर गीत लिखे जा चुके हैं ।उतनी ही संख्या में गायकों ने अपना स्वर प्रदान कर इसे और भी मोहक  बना दिया  ।भारत आदिकाल से पर्वों के देश के रूप में जाना जाता है।  हर पर्व - त्योहारोँ पर गीत रचे गए , जो आज  हमारी लोक कला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है ।अन्य पर्वों की तुलना में छठ पर्व पर सबसे ज्यादा गीत लिखे और  गाये गए है। यह  सिलसिला यहीं नहीं रुक रहा है बल्कि निरंतर छठ पर्व पर हमारे गीतकार कुछ न कुछ लिख रहे हैं और गायकगण स्वर प्रदान कर रहे हैं।

       डूबते सूरज को अर्घ्य अर्पित करने का तात्पर्य है यह कि मानवीय जीवन में संकल्प का बड़ा ही महत्व है । हर मनुष्य को कभी भी अपने  संकल्प पथ से  हटना  नही चाहिए।  जीवन में निराशा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। हर शाम के बाद सुबह का आना निश्चित है । जीवन एक यात्रा के समान है।  सुख-दुख  जीवन यात्रा के साथी होते हैं।  इनका आना और जाना लगा रहता है।  विपरीत परिस्थितियों में भी मनुष्य अपने संकल्प पत्र से विमुख ना हो । जो मनुष्य अपने संकल्प पथ से विमुख नहीं होते और दृढ़ता पूर्वक अपने संकल्प का पालन करते हैं। उनके जीवन में सूर्योदय आशा का नूतन सवेरा लेकर आते हैं । उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने का सार तत्व यही है । किसी भी व्यक्ति को उसका कर्म ,सोच और संकल्प ही महान बनाता है।  सूर्य की उपासना का तात्पर्य भी यही है ।हर मनुष्य को कर्मवीर होना चाहिए। जीवन के संघर्ष से मुकाबला  पूरी निर्भरता के साथ  करना चाहिए । मनुष्य की सोच सदैव सकारात्मक होनी चाहिए । रत्ती भर नकारात्मकता का स्थान नहीं होना चाहिए।  श्रेष्ठ कर्म और उत्कृष्ट सोच   जीवन के अंतिम क्षणों तक बनी रहे,  इसलिए डूबते और उगते सूरज को अर्घ्यय अर्पित करते हैं।



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