शनिवार, 2 अक्तूबर 2021

सड़क पर बापू* / *प्रेम रंजन अनिमेष*

 

                              

बापू को देखा एक दिन 

अपने ही नाम की सड़क के किनारे 

उसे पार करने की कोशिश करते 


तेज चलती सड़क थी

और भीड़ भारी

चाह कर भी वे ऐसा 

कर नहीं पा रहे थे


न आसपास कोई ऐसा

जो हाथ थामे

पार करा दे

स्वतंत्र आधुनिक भारत के 

एक बड़े नगर की सड़क उन्हें 


होता भी कोई 

तो क्या वे करते स्वीकार 

मदद ऐसी

जीवन भर खुद जो 

राह दिखाते रहे 

सबको


और तो और 

वे तो यह भी

पहचान नहीं 

पा रहे थे

कि यह सड़क है

उन्हीं के नाम की


क्योंकि इस आजाद हिन्द स्वराज के 

नये चलन में 

नाम सिकुड़ कर 

रह गया था आद्यक्षर भर

वह भी शोषक शासकों की भाषा में 

जिनके खिलाफ बहुत पहले 

भारत छोड़ो का

अलख जगाया था उन्होंने 


न महात्मा न गाँधी 

उन्हें खुद पता था नहीं 

यह कौन एमजी 

इस पथ की संज्ञा नयी


सांझ ढल चुकी थी

वाहनों की मुखबत्तियों की

चकाचौंध में 

नजर धुँधलायी


मैली कुचैली बचकानी धोती के

सिरे से

पलकें पोंछते

आया ध्यान 

ऐनक तो थी नहीं वहॉं 


सोये जब थे वे

निकाल ले गये थे 

उनका दिन मनाने वाले 

अपना दिन बनाने वाले...

                               ⚛️

 ( कविता क्रम *' आज राज समाज  '* से)

                               ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*

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