ओशो का सबसे विवादित विचार.
परिवार : ओशो कहते हैं कि एक-एक परिवार में कलह है। जिसको हम गृहस्थी कहते हैं, वह संघर्ष, कलह, द्वेष, ईर्ष्या और चौबीसों घंटे उपद्रव का अड्डा बनी हुई है। लेकिन न मालूम हम कैसे अंधे हैं कि देखने की कोशिश भी नहीं करते। बाहर जब हम निकलते हैं तो मुस्कराते हुए निकलते हैं। घर के सब आंसू पोंछकर बाहर जाते है- पत्नी भी हंसती हुई मालूम पड़ती है। पति भी हंसता हुआ मालूम पड़ता है। ये चेहरे झूठे हैं। ये दूसरों को दिखाई पड़ने वाले चेहरे हैं। घर के भीतर के चेहरे बहुत आंसुओं से भरे हुए है। चौबीस घंटे कलह और संघर्ष में जीवन बीत रहा है। फिर इस कलह और संघर्ष के परिणाम भी होंगे ही।
विवाह : हमने सारे परिवार को विवाह के केंद्र पर खड़ा कर दिया है, प्रेम के केंद्र पर नहीं। हमने यह मान रखा है कि विवाह कर देने से दो व्यक्ति प्रेम की दुनिया में उतर जाएंगे। अद्भुत झूठी बात है, और पांच हजार वर्षों में भी हमको इसका ख्याल नहीं आ सका है। हम अद्भुत अंधे हैं। दो आदमियों के हाथ बांध देने से प्रेम के पैदा हो जाने की कोई जरूरत नहीं है। कोई अनिवार्यता नहीं है बल्कि सच्चाई यह है कि जो लोग बंधा हुआ अनुभव करते हैं, वे आपस में प्रेम कभी नहीं कर सकते।
प्रेम का जन्म होता है स्वतंत्रता में। प्रेम का जन्म होता है स्वतंत्रता की भूमि में- जहां कोई बंधन नहीं, कोई मजबूरी नहीं है। किंतु हम अविवाहित स्त्री या पुरुष के मन में युवक ओर युवती के मन में उस प्रेम की पहली किरण का गला घोंटकर हत्या कर देते हैं। फिर हम कहते हैं कि विवाह से प्रेम पैदा होना चाहिए।
"ओशो"
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