बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

मन में है आकाश कम नहीं / रतन वर्मा



जीवन में अवसाद बहुत, पर,

सपनों के सौगात कम नहीं,

कंट भरी है राह, परन्तु ,

मन में है आकाश कम नहीं !


पंछी बन उड़ना जो चाहूं,

पर डैनें हैं बोझल -बोझल,

नैन पपीहरा चांद निहारे,

चंदा दिखता मद्धम -मद्धम,


चलना चाहूं, पकड़ उंगली,

उसमें भी झटकार कम नहीं ! 

कंट भरी है राह, परन्तु,

मन में है आकाश कम नहीं !


जीवन का यह ताना -बाना , 

चलता रहा सदा मनमाना,

कहां चाल में चूक हो गयी,

अपना खास हुआ बेगाना !


हमने प्यार लुटाया जी भर,

बदले में दुत्कार कम नहीं,

कंट भरी है राह परन्तु ,

मन में है आकाश कम नहीं !

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