बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

प्यार से वो ह़लाल करता है। / अखिलेश श्रीवास्तव चमन

 मेरा का़तिल बड़ा रहम दिल है,

प्यार से वो ह़लाल करता है।



जी, यह मेरी ही एक ग़ज़ल की लाइनें हैं जो आज गाजियाबाद से लखनऊ की यात्रा में बहुत शिद्दत से जेहन में कौंध रही हैं।

गाजियाबाद में मेरा बेटा रहता है इसलिए यहाँ आना जाना लगा रहता है। मैं हमेशा शताब्दी एक्सप्रेस से यात्रा करता हूँ। कोरोना से पहले लगभग आठ सौ किराया था जिसमें अखबार, पानी की बोतल, चाय, नाश्ता और खाना भी मिलता था। सीनियर सिटीजन की 40 प्रतिशत छूट के बाद लगभग साढ़े चार सौ किराया लगता था। उतने में चाय नाश्ता करते, खाते, पीते आ जाते थे। कोरोना में ट्रेन बंद हो गई थी। जब दोबारा शुरू हुई तो चाय, नाश्ता, खाना, पानी मिलना बंद हो गया, सीनियर सिटीजन की छूट समाप्त कर दी गई और किराए में मात्र लगभग ढ़ाई गुने की वृद्धि हो गई। आज अपने झोले में घर से पानी की बोतल और नाश्ता, खाना लेकर 1100/- रुपये किराए में जा रहा हूँ। याद आ रहे हैं वे दिन जब रेल किराए में यदि दो रुपए, चार रुपए की भी वृद्धि हो जाती थी तो हंगामा खड़ा हो जाता था,विरोधी दल रेल रोकने लगते थे और  अखबार वाले उसे मुख पृष्ठ की खबर बना देते थे । लेकिन आज साढ़े चार सौ का टिकट ग्यारह सौ का हो गया, सारी सुविधाएं भी समाप्त कर दी गईं लेकिन कहीं सुगबुगाहट तक नहीं है।  न तो विरोधी पार्टियों और न ही मीडिया किसी के भी कानों पर जूँ नहीं रेंग रहा है। ऐसा शायद इसलिए है कि बोलना राष्ट्रहित के प्रतिकूल है। तभी मैंने लिखा है-----


देश के विकास में बाधा जुबान है

चुप ही बैठिए, नहीं सवाल कीजिए।


वैसे अगर देखें तो एक तरह से सरकार का यह कदम जन कल्याणकारी ही है। किराया अधिक होगा तो लोग यात्रा नहीं करेंगे और यात्रा नहीं करेंगे तो वे कोरोना, मार्ग दुर्घटना तथा चोरी, पाकेटमारी आदि से सुरक्षित रहेंगे। तो एक बार प्रेम से बोलिए जय श्रीराम।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चिड़िया का घोंसला  सर्दियाँ आने को थीं और चिंकी चिड़िया का घोंसला पुराना हो चुका था। उसने सोचा चलो एक नया घोंसला बनाते हैं ताकि ठण्ड के दिनों ...