भारत यायावर नहीं रहे।
आज दिन में फोन किया। स्वीच आफ आया। अंदेशा हुआ शायद अस्पताल गए हों लेकिन शाम होते-होते उनके निधन की सूचना आ गई।
वर्षों से रात में दस बजे के बाद यह कहते हुए कि मुझे रात में नींद बहुत कम आती है बिना किसी संकोच के घ॔टो फोन पर समकालीन साहित्य की, घर-परिवार की बात करने वाले सबसे पुराने मित्र चले गए।
मेरी पहली कविता उन्होंने ही 1978 में ने नवतारा में प्रकाशित की थी। हमारी मित्रता की शुरुआत वहीं से हुई । जब वे फणीश्वरनाथ रेणु रचनावली का संपादन कर रहे थे तो उनके संबंध में जानकारियों , उनकी रचनाओं की तलाश में प्रायः पटना आते थे । पटना रेणुजी की कर्मभूमि रही है। पटना में उनके मित्रों की संख्या बहुत ज्यादा थी। यायावरजी अक्सर मुझे भी साथ ले लेते। कभी मुझे समय नहीं होता तो वे मेरी साइकिल लेकर चले जाते और देर रात में वापस आते। रेणुजीके प्रति वे अपने अंतिम दिनों तक समर्पित रहे। हर बातचीत में उनपर अपने काम की प्रगति की जानकारी जरूर देते।
अंतिम मुलाकात दो वर्ष पहले हजारीबाग में हुई थी। पहुंचते ही उन्हें फोन किया। वे खुश भी हुए और दुखी भी कि मैं इतने कम समय के लिए क्यों आया। मिलने आए। अपना नया काव्य संग्रह कविता फिर भी मुस्कुराएगी दी। हमने फिर हिलने का वायदा किया लेकिन कोरोना के कारण न वे आ पाए, न मैं जा पाया।
पिछले कुछ महीनों से वे अस्वस्थ चल रहे थे। हमेशा कहते खड़ा होने या बैठने में दिक्कत होती है। लेकिन हजारीबाग से बाहर कहीं जाकर ईलाज करवाने को तैयार नहीं होते।
मर्माहत हूं।
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