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पूर्णिया जिला के ही रेणु थे। जिला जब बँट गया तो अब अररिया के कहलाते हैं। पर बचपन से रेणु को हमलोग अपने ही जिला का मानते रहे हैं। जब जिला बांटा गया तब भी रेणु नहीं बंट सके ,दिल में ही रह गए ! आंचलिकता के कथाकार अंचल में नहीं बंटे। तो रेणु न केवल हमारे थे बल्कि वो जन जन के थे। पर पूर्णिया जिले में रहने के कारण लोग उन्हें अपने घर का ही समझते थे। उनके कथा पात्र भी घर घर में मिल जाते थे। कुछ तो असली पात्र ही मिल जाते थे। नक्षत्र मालाकार आदि पात्र वहाँ लोगों ने देखा भी जो उनकी रचनाओं में जीवंत थे।
रेणु के बाल लंबे थे। पंत जैसे। तो हम सब जब बच्चे थे तो उनको कवि समझते थे। बाद में पता चला कि ये तो कथाकार हैं तो थोड़ा आश्चर्य हुआ ! मेरे भी बाल लंबे थे स्कूल टाइम में। मैं भी अपने स्कूल का एक छोटा मोटा रेणु ही था। कुछ लोग बोलता भी था ,देखो अपने रेणु जी आ रहे हैं। कोई हास से ,कोई उपहास से तो कोई गम्भीरता से बोलता था पर जो भी बोलता था "निम्मने" लगता था।
मैं भी साहित्य रसिक था। कथा-साहित्य खूब पढ़ता था। रेणु को भी खूब पढ़ा। उनकी रचनाओं पर बनी फिल्में भी खूब देंखी। "मारे गए गुलफ़ाम उर्फ तीसरी कसम" पर बनी फिल्म भारतीय सिनेमा जगत का मील का पत्थर है। अभिनय ,गीत ,संगीत ,फोटोग्राफी, संवाद, निर्देशन हर मामले में सर्वश्रेष्ठ। फिल्मों के अध्येताओं को "तीसरी कसम" जरूर देखनी चाहिए।
रेणु लेखक तो थे ही एक सामाजिक योद्धा भी थे। विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर खूब लिखे। राजनीति में भी रुचि रखते थे। चुनाव में खड़े भी हुए पर हार गए। इमरजेंसी का विरोध किये। कई बार जेल की यात्रा की। रेणु में एक और बात थी। रसिया थे वे। मजाकिया भी खूब। "दिनमान" में बिहार की बाढ़ पर लिखे भी। उसी वक्त साली के लिए लिखे कि यह "केलि कुंजिका" होती है। मैं भी जब बड़की भउजी की छोटकी बहिन फुलवा को केलि कुंजिका कहता हूँ तो वह फुल के कुप्पा हो जाती है!
रेणु का व्यक्तित्व हँसोड़ था। मस्त,जिंदादिल भी। कुछ कुछ लापरवाह भी। मानो यायावर हों ! रेणु पर बहुत लोगों ने कार्य किया है। यायावर शब्द से याद आया ,हजारीबाग के कवि,लेखक भारत यायावर जी ने भी रेणु पर गम्भीर कार्य किया है। उनसे कई बार बातचीत भी हुई तो जाना कि उनका कार्य कितना महत्वपूर्ण है। इसे सभी को पढ़ने की भी जरूरत है । अभी Kishan Kaljayee जी ने भी अपनी पत्रिका का रेणु पर केंद्रित विशेष अंक निकाला है, उसे भी पढ़ने की जरूरत है। बहुत अंक निकले हैं उनपर केंद्रित। उन्हें पढ़िए। अद्भुत, अनजानी कहानियां मिलेगी पढ़ने को! वैसे रेणु की रचनाओं को तो पढ़े ही , जरूर से जरूर !
एक बात भूल गया कहना ,रेणु परवल की सब्जी ,भुजिया खाने के दीवाने थे। दिल्ली जैसे शहर में भी परवल की खोजायी हो जब वो दिल्ली जाते थे । पर तब बहुत ही कठिन था इसका मिलना। सब्जी वाला भी बोले, परवल क्या होता है?
रेणु अब नहीं हैं। सौ वर्ष हो गया उनके जन्म का। पर नहीं रहते भी हमारे दिल में रहते नजर आते हैं।हर प्रेमी की आहों में,भावों में रेणु हैं। तो वो गए नहीं हैं ,रहेंगे सदा हमाiरे जीवन में। हिरामन अभी भी उनको खोज रहा है तो उनको जाना कहाँ है, यहीं रहना है,हमारे बीच ही !
आज रेणु को याद करते उनके जन्मशती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ!
सादर....🌹🙏🌹
© डॉ. शंभु कुमार सिंह
4 मार्च ,21 / पटना
www.voiceforchange.in
#इश्श
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(नीचे तस्वीरों में एक असली रेणु और एक नकली रेणु !)
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