मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

जब प्रकट हुई गंगा


प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


#एक ऐसा सन्त जिसके भक्ति को सिध्द करने के लिये उनके पाश प्रकट हुईं गंगा मैया :

     - 'राम', 'राम', ' राम ' नामके साथ जूते का हर सिलाई करता था  - ऐसा एक सन्त हुआ भारत भूमि में - माघी पूर्णिमा के दिन धर्म नगरी काशी में संत रुईदास जी का जन्म हुआ था १४ शतक में।

सिध्द महात्मा नाभाजी महाराज का 'भक्तमाल' ग्रन्थ में से जाना जाता है कि इनके माता-पिता चर्मकार थे,इन्होंने अपनी आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाया।जूते बनाकर जो कमाई होती उससे संतों की सेवा करते, इसके बाद जो कुछ बच जाता उससे अपना गुजारा कर लेते थे।

कहा जाता है के वो हर दिन दो जूते बनाता था - एक कोई साधु सन्त भक्त को दे देता था,और दूसरा बेचके गुजारा करता था।रुईदास जी को ही रविदास के नाम से भी जाना जाता है।

         एक दिन एक ब्राह्मण इनके द्वार आये और कहा कि गंगा स्नान करने जा रहे हैं एक जूता चाहिए। इन्होंने बिना पैसे लिया ब्राह्मण को एक जूता दे दिया । 

रुईदास जी के पाश कुछ नही था,वो एक सुपारी ब्राह्मण को देकर कहा कि, इसे मेरी ओर से गंगा मैया को दे देना पूजा का भेट समझ के।

 ब्राह्मण रुईदास जी द्वारा दिया गया सुपारी लेकर गंगा स्नान करने चल पड़ा। गंगा स्नान करने के बाद गंगा मैया की पूजा की और जब चलने लगा तो अनमने मन से रुईदास जी द्वारा दिया सुपारी गंगा में उछाल दिया। तभी एक चमत्कार हुआ गंगा मैया प्रकट हो गयीं और रुईदास जी द्वारा दिया गया सुपारी अपने हाथ में ले लिया। गंगा मैया ने एक सोने का कंगन ब्राह्मण को दिया और कहा कि इसे ले जाकर रुईदास को दे देना।


       ब्राह्मण भाव विभोर होकर रविदास जी के पास आया और बोला कि आज तक गंगा मैया की पूजा मैने की लेकिन गंगा मैया के दर्शन कभी प्राप्त नहीं हुए। लेकिन आपकी भक्ति का प्रताप ऐसा है कि गंगा मैया ने स्वयं प्रकट होकर आपकी दी हुई सुपारी को स्वीकार किया और आपको सोने का कंगन दिया है। आपकी कृपा से मुझे भी गंगा मैया के दर्शन हुए। इस बात की ख़बर पूरे काशी में फैल गयी।रुईदास जी के विरोधियों ने इसे पाखंड बताया और कहा कि अगर रुईदास जी सच्चे भक्त हैं तो दूसरा कंगन लाकर दिखाएं।

        विरोधियों के कटु वचनों को सुनकर रुईदास जी भक्ति में लीन होकर भजन गाने लगे। रुईदास जी चमड़ा साफ करने के लिए एक बर्तन में जल भरकर रखते थे। इस बर्तन में रखे जल से गंगा मैया प्रकट हुई और दूसरा कंगन रुईदास जी को भेंट किया। रुईदास जी के विरोधियों का सिर नीचा हुआ और संत रुईदास जी की जय-जयकार होने लगी।

इसी समय से यह दोहा प्रसिद्ध हो गया -  'मन चंगा तो कठौती में गंगा।'

       कहाँ जाता है कि उनकी भक्तिसे प्रसन्न होकर स्वयम भगवान श्रीराम जी एक बनिक के रूप में आये थे,उसे दर्शन दिया था।आज भी सन्त समाज में रुईदास का 'जय' दिया जाता है।

ऐसा बहुत सारे सन्त हुए पवित्र भारतभूमि पर,उन सबको  वारंवार दंडवत प्रणाम।


राधे राधे ।।

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