विनम्र श्रद्धांजलिः नहीं रहे हिन्दी के मूर्धन्य कवि-गद्यकार भारत यायावरa
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मेरे बहुत ही प्रिय, अग्रज समान, हिन्दी कवि,जीवनीकार
,संपादक,आलोचक व विनोबा भावे विश्वविद्यालय ,हज़ारीबीग,झारखंड में हिन्दी के हाल
ही में, बमुश्किल कोई 22 दिन पहले अवकाशप्राप्त करने वाले प्रोफेसर भारत यायावर नहीं रहे | इधर उनसे मेरा निरंतर मोबाइल एवं सोशल मीडिया के ज़रिए संपर्क-संवाद बना हुआ था | उनसे मेरी पहली मुलाक़ात जून 1992 में जलेस के बिहार राज्य सम्मेलन में हज़ारीबाग में हुई थी | तारीख़ भूल रहा हूँ | उस सम्मेलन में 'हंस' के संपादक प्रख्यात कथाकार-विमर्शकार राजेन्द्र यादव,जनवादी कहानीकार-उपन्यासकार इसराइल,समकालीन चर्चित कथाकार संजीव,प्रख्यात आलोचक डॉ.चंद्रभूषण तिवारी व डॉ.नंदकिशोर नंदन आदि शामिल हुए थे | उसी सम्मेलन में आरा के सुपरिचित जनवादी कहानीकार डॉ.नीरज सिंह को जलेस का प्रांतीय सचिव चुना गया था और डॉ.चंद्रभूषण तिवारी कुल एक दशक तक बिहार के सचिव पद पर सक्रिय रहकर उसके दायित्व से अलग हुए थे | वे प्रथम व संस्थापक सचिव थे | उनदिनों मैं बेरोज़गार था और नवंबर,1991 में 'भारत में जन नाट्य आंदोलन' पर पी-एच.डी. कर वल्लभ विद्यानगर से अपने गाँव लौटा था | इस सम्मेलन के कुछ दिन पहले ही 15 मई,1992 को मुझे दूसरे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी | जो हो,मेरे शोधनिर्देशक थे प्रसिद्ध आलोचक डॉ.शिवकुमार मिश्र |
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बहरहाल,इधर मैंने भारत यायावर जी को जून,2021में Rashmi Prakashan Lucknow से प्रकाशित अपना तीसरा कविता संग्रह 'डुमराँव नज़र आएगा' भेजा था तो उन्होंने तत्काल मोबाइल पर बधाई दी थी और कहा था कि इसपर आगे विस्तार से लिखूँगा | एक फ़ेसबुक पर छोटी टिप्पणी भी लिखी थी |
वे बहुत ही ज़िंदादिल व विनोदी स्वभाव के इंसान थे | वे रेणु की जीवनी लिख रहे थे | वे नामवर सिंह की जीवनी पर भी काम कर चुके थे | वे महावीर प्रसाद ग्रंथावली संपादित कर चुके थे | वे लेखन के मोरचे पर सतत सक्रिय थे | वे अंतिम सांस तक लेखन से जुड़े रहे | कल जब उन्होंने अपने अस्वस्थ होने की ख़बर फ़ेसबुक पर दी तो मैंने उनके स्वस्थ होने के लिए शुभकामनाएँ दी थी | मैंने यह तो कदापि नहीं सोचा था कि वे इतना शीघ्र हमारे बीच से अनुपस्थित हो जायेंगे | अभी उन्होंने उमाशंकर सिंह परमार की एक हाल ही की पोस्ट पर जो मेरे संग्रह पर थी,तीख़ा कटाक्ष किया था | वे हमेशा व्यंग्य व हँसी-मज़ाक की फूलझड़ी छोड़ते रहते थे | वे अपने विरोधियों की परवाह न करते हुए सतत लिखने-पढ़ने से मतलब रखते थे | वे लेखक संगठनों की गंदी राजनीति से ऊबे हुए थे | उनका मानना था कि जो लिखता है वही लेखक होता है | देर-सबेर उसका मूल्यांकन होना ही है | सिर्फ़ लेखक संगठन की सदस्यता ग्रहण करने से कुछ नहीं होता है |
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कहीं न कहीं वे अपनी उपेक्षा से अंदर से बेचैन थे | वे अपने जीते-जी जिस सम्मान या हक़ से जुड़े सुख को हासिल करना चाहते थे,वह अभी नहीं नहीं मिल सका था | जो हो, भारत यायावर का इस उम्र में असमय जाना हिन्दी संसार में एक शून्य पैदा कर गया है | उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि | उनके शोकसंतप्त परिवार को इस विषम दुःख को सहने की शक्ति मिले | नीचे उनकी एक टिप्पणी उनके फ़ेसबुक वॉल से दे रहा हूँ जिसमें उन्होंने #सुख पर विचार क्या है |
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" सुख क्या है?"
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भारत यायावर (23--12--2019)
हर मनुष्य का अपना अलग सुख होता है।
सुख वह अनुभूति है जो तन-मन को अच्छी लगे।
सुख वह है जो हमारे अनुकूल हो।
कामना की पूर्ति होने से जो आनन्द मिले, वह सुख है। कष्टों से छुटकारा मिलना भी सुख है।
बेचैनी से छटपटाते हुए आदमी को जब चैन मिले तो सुख है। उपयुक्त साधन का मिल जाना भी सुख है। भूखे को भरपेट भोजन मिलना उसके लिए सुख है। किसी प्रिय से अचानक भेंट हो जाना भी सुख है।
अलभ्य, अकल्पित का मिलना भी सुख है।
लेकिन विचारों की दुनिया में भटकने वाले लोगों का सुख क्या है?
एक बार हजारी प्रसाद द्विवेदी से नामवर सिंह ने पूछा । द्विवेदी जी ने जवाब दिया, अपने को समझा जाना सबसे बड़ा सुख है।
हर विचारक की यह पीड़ा होती है कि उसे ठीक से समझा नहीं गया।
रचनाकार की पीड़ा होती है कि उसका ठीक से मूल्यांकन नहीं किया गया।
अब कोई हो कि उन्हें समझ पाए और मूल्यांकन कर पाए, तभी तो उनको सुख मिलेगा।
ज़्यादातर लेखकों को तो छपकर ही सुख मिल जाता है।
भवानी प्रसाद मिश्र ने नए लेखकों को उत्साहित करते हुए कहा है :
" लिखे जाओ!
पत्र-पत्रिकाओं में दिखे जाओ!
इतना ही काफी है
बस है!
छपना ही आधुनिक रस है!"
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