. दोहे
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कलियाँ चटकी और फिर,खिले फूल ही फूल।
छूकर वासंती हवा,राह गए हम भूल।।
कोयल कूकी डाल पर,भूली पीर तमाम।
पीले पत्ते छोड़कर,फिर बौराया आम।।
जाडे़ की जकड़न हटी,आया फागुन मास।
खिला गाल के भाल पर,जीवन का उल्लास।।
शीतकाल कर अलविदा,आता मृदुल वसंत।
फूलों ने खिलकर कहा,रहो सदा रसवंत।।
जीवन का मेला लगा,बिखरे रंग हजार।
तू भी कोई छाँट ले,क्यों बैठा मन मार।।
सरसों से गेहूँ कहे,अल्हड़ उमर सँभाल।
खिले फूल के खेत में,और खिल उठे गाल।।
कुछ यौवन कुछ लाज से,लाल हुए जब गाल।
फागुन कहे वसंत से,किसने मला गुलाल।।
प्रिय तुम जब मुसका उठी,फैला प्रेम-प्रकाश।
घर-आँगन हँसने लगा,खिल-खिल उठे पलाश।।
फागुन के ये चार दिन,बोल प्यार के बोल।
मस्ती के माहौल में,तू भी मस्ती घोल।।
कुछ मिट्टी ने रस दिया,कुछ वासंती घाम।
कुछ कोयल की कूक से,हुए रसीले आम।।
मधुवन में मधुकर करे,मधुर-मधुर गुंजार।
सिमटे कलिका-कामिनी,लोक-लाज के भार।।
छिटक छरहरी चाँदनी,झाँके मधुवन बीच।
मादकता मधुमास की,प्रीत रही है सींच।।
आई उनकी याद तो,महका हरसिंगार।
आहट सुनकर द्वार पर,मन में बजा सितार।।
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. दोहे
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मैं नन्हा सा दीप हूँ,करता तनिक उजास।
सूरज कहकर क्यों करे,जग मेरा उपहास।।
घर-बाहर सब एक है,मन को रखिए शुद्ध।
घर में रहो कबीर से,बाहर जैसे बुद्ध।।
सुविधाओं का आपने,लगा लिया अंबार।
खिलता जीवन-पुष्प तो,झंझाओं के पार।।
तीन पीढि़याँ एक छत,रहे मौज से खूब।
अब सबके कमरे अलग,फिर भी जाते ऊब।।
नई सदी से विश्व ने,यह पाया उपहार।
बात-बात पर आदमी,लड़ने को तैयार।।
सबसे ऊँचा द्वार है,मानवता का द्वार।
सबसे अच्छा धर्म है,तेरा-मेरा प्यार।।
जीवन जीने के लिए,चुनिए मुश्किल ढंग।
संकट में खिलते सदा,इंद्रधनुष के रंग।।
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--किशोर कुमार कौशल
9899831002
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