रविवार, 10 अक्टूबर 2021

मनु लक्ष्मी मिश्रा अपनी नजर (में ) से

 मेरा जन्म नवरात्र में दुर्गा नवमी के दिन हुआ था,उस दिन 9 अक्टूबर की तारीख थी, चारों तरफ दुर्गा पूजा और दशहरे की धूम थी और मां प्रथम संतान को जन्म देने जा रही थी।घर में कोई बड़ा बूढ़ा नहीं, मां प्रसव पीड़ा से बेहाल थी और पिताजी घर में पैसा न होने से इधर से उधर परेशान टहल रहे थे,कि तीन महीने बीत गए कटरा और मनमोहन पार्क में जो दो ट्यूशन पढ़ाते थे, उनके यहां किसी कारणवश मेहनताना नहीं मिल पाया था,बता दूं कि पिताजी मेरी मां को गांव से इलाहाबाद ले आए थे जहां वो एक कमरा किराए में लेकर स्वयं पढ़ाई कर रहे थे,इसी वर्ष पी एच डी का वायवा दिया था और ट्यूशन करके अपना और मेरे छोटे चाचा और मम्मी को पढ़ा रहे थे। मम्मी जब दर्द से रोने लगीं तो भागते हुए मकान मालकिन के पास जिन्हें वो अम्माजी कहते गए कि अम्माजी देखो न आपकी बहू रानी रोय रही है, अम्माजी बहुत सहृदय महिला थीं तुरंत आईं और बोलीं बेटा इ तो बच्चे का दर्द है ,पहलौठी संतान में अधिक दर्द होता  है, पानी गर्म करके दो हम सिंकाई करते हैं।जब थोड़ा दर्द कम हुआ तो बोलीं अस्पताल में एडमिट कराए देव नहीं तो रात बिरात परेशान होय  पड़ी। पिता जी अम्माजी के सामने सरेंडर करते हुए बोले , अम्माजी अब तुमही कुछ करो हमका कुछ नहीं पता। अम्माजी ने मां को रिक्शे से ले जाकर कमला नेहरू हास्पिटल में प्राइवेट वार्ड में भर्ती कराया, पिताजी अंदर ही अंदर खुदबुदा रहे थे कि अस्पताल का खर्चा कैसे वहन होगा पर अम्माजी के सामने क्या बोले। पिताजी अम्माजी से कहें, अम्माजी आप बैठो हम कमरा पर जाकर लाला(मेरे चाचा जो ग्यारह में पढ़ते थे और साथ में रहते थे)को गांव भेज कर अम्मा (दादी)को बुलवा लेते हैं। पिता जी पहलौठी संतान के होने की खुशी से ज्यादा दुखी पास में पैसा न होने से थे, कुछ सोचते हुए चले जा रहे थे कि साइकिल मनमोहन पार्क में उन्हीं के घर जाकर रुकी जिनके यहां ट्यूशन पढ़ाते थे। जाकर बैठे ही थे कि गृहस्वामी जिन्हें पिताजी भी कम ही देखते थे आ गये बोले गुरु जी जब से आप पढ़ा रहे हैं हमारे दोनों बच्चों में बहुत परिवर्तन आया है, कृपया आज और कल दशहरा है आप छुट्टी कर दीजिए, आज चौक का दशहरा है, बच्चे मेला देखने जाएंगे। पिता जी के पास भी कहां वक्त था,उनका कीमती वक्त तो अस्पताल में था, पिताजी जी संकोच वश चाहकर भी ट्यूशन फीस नहीं मांग सके, उठने लगे तो सेठ जी बोले गुरु जी मैं परेशानी में था इसलिए आपके पैसे न चुका पाया,आज मैं आपको पिछले तीन महीनों का और आगे के दो महीने का पैसा दे रहा हूं। पिताजी की आंखों के सामने मां जगदम्बा की प्रतिमा साकार हो गई,जय मातेश्वरी तुम सब कुछ समझती हो मां। पिता जी ने सोचा चलो घर चलकर लाला को गांव भेज दें,बस आजकल में ही कुछ हो जाएगा, अम्मा आ जाएं तो संभाल लेंगी, कमरे पर आए खटिया पर बैठे ही थे कि चाचा पानी ले आए और अपनी भौजी का हाल चाल पूंछे। पिता जी कहे तुम आज ही गांव चले जाओ और गांव से अम्मा को ले आओ और साथ में पांच किलो देशी घी भी ले आओ। तभी चाचा बोले भाई डाकिया आया था चिट्ठी दे गया है, पिताजी ने लिफाफा खोला,प्रेषक महालेखाकार कार्यालय इलाहाबाद (Office of Accountant General Allahabad) में आडिटर के पद पर चयन की सूचना थी, पिताजी उछल पड़े और पूजा घर में मां के चरणों में नतमस्तक हो गए -हे भवानी, मां जगदम्बे आपकी अहैतुकी कृपा है दास पर, मां मेरी संतान को निर्विघ्न रूप से संसार में लाओ, मेरी पत्नी बहुत कष्ट में है, रक्षा करो मां। इधर पिताजी की प्रार्थना, उधर मेरा अस्पताल में जन्म लेना। पिता जी अस्पताल के लिए रवाना हो गए, शांत चित्त, सुबह से कंगाल होने की चिंता पर मालामाल होने का सुख अनुभव करते हुए कब अस्पताल पहुंच गए पता ही नहीं चला। जैसे ही पिता जी अस्पताल पहुंचे, अम्माजी बोली अबहिन आए हो पाड़े,तुम्हार घर लक्ष्मी आई है लक्ष्मी।अहा पिताजी खुशियों से भर गये, शांत और गंभीर रहने वाले मेरे पिताजी ने दुबली पतली अम्माजी को गोद में उठा कर नचा दिया। अस्पताल के लोग और नर्स आदि देखें कि कोई बिटिया के होने पर भी इतना खुश होता है। पिता जी मुझे हमेशा अपनी लक्ष्मी और तारणहार मानते रहे और अब भी मानते हैं, मेरी मां ने मेरा नाम मनु और कागजों का नाम सुष्मिता सोच रखा था क्योंकि पिता जी के गुरु जी की लड़की का नाम स्मिता था, शायद वो इस नाम से प्रभावित थीं, इसलिए मिलता जुलता नाम सुष्मिता रखना चाहती थी पर पिताजी अडिग थे कि ये मेरी लक्ष्मी बेटी है, इसके भाग्य से मुझे नौकरी मिली है, दोनों में समझौता हुआ और मैं मनु लक्ष्मी हो गई।

                  मेरा जन्म दिन हमेशा मेरे मां पिताजी के लिए, मेरे भाई बहनों के लिए, मेरे ससुराल वालों के लिए, मेरे बच्चों के लिए और मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए महत्वपूर्ण रहा है और सच बताऊं मेरे लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है,आप सभी ने इतना प्यार लुटाया है मुझ अकिंचन पर , इतनी शुभकामनाएं दी हैं कि मैं कभी नहीं उऋण हो पाऊंगी, आप सभी का शुक्रिया। इसके साथ ही बहुत बहुत शुक्रिया मेरी बचपन की सखी Deepshikha Srivastava , मेरी प्यारी और प्यारे से भैयू Sanjay Sinha ,दुलारी भाभी Deepshikha Seth , सबकी सहायता में तत्पर भाई Rajeev Chaturvedi , भाभी Renu Chaturvedi , भाभी Gayatri Rai ,मेरी प्यारी दीदी Upma Pandey Ginni , Manisha Joshi , Manisha Upadhyay ,  Shambhunath Shukla  ji ,Saloni Shyam , Anupam Kumar Pandey , Rashmi Pandey , Rakesh Pandey , भरत पाण्डेय हरदोई ,विमलेन्दु, अरुणा गाबा , Anjana Sahni ji, Madhu Tripathi चाची जी, Poonam Jha , Yogendra Pandey , प्यारी सखी Sushma Pandey , बहुत स्नेह करने वाले भैया शैलेन्द्र कुमार सिंह , इलाहाबाद से Sanjay Dubey , प्यारी मां Urmila Srivastava , प्रिय अनुज Anuraag Srivastav , यशस्वी पाण्डेय सावर्ण्य , आकांक्षा यशस्वी सावर्ण्य ,मथुरा से बहुत प्यारे भैया Aditya Chaudhary  और Vijay Dubey और प्यारी भाभियां विष्णुप्रिया 'पारिजात' , Asha Chaudhary , Bharti Dubey ,प्रयागराज खनकती हुई प्यारी सी आवाज वाली दीदी Sneh Mishra jiका और किस किस का नाम लिखूं,लिख नहीं पाऊंगी क्योंकि इतने लोग प्यार करने वाले हैं कि पन्ने दर पन्ने भरते जाएंगे पर नाम नहीं खत्म होगा। love u all ssfb and all friends 💕💕🙏🙏


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