शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2021

रौशनी के नाम ओशो का एक पत्र

 ओशो रजनीश जी द्वारा लिखित एक पत्र।।एक ख़ुशनसीब को ओशो का पत्र 🙏🙏❤️❤️🙏🙏 ❤️❤️


प्यारी रोशन, 

प्रेम।

तेरा पत्र पाकर आनंदित हूं।

यह भी तुझे ज्ञात है कि उस दिन तू मिलने आई, तो चुप क्यों रह गई थी?

लेकिन, मौन भी बहुत कुछ कहता है।

और, शायद शब्द जो नहीं कह पाते हैं, वह मौन कह देता है।

प्रेम और विवाह के संबंध में तूने पूछा है।

प्रेम अपने में पूर्ण है।

वह और कुछ भी नहीं चाहता है।

विवाह "कुछ और" की भी चाह है।

लेकिन, पूर्ण प्रेम कहां है?

इस पृथ्वी पर कुछ भी पूर्ण नहीं है।

इसलिए, प्रेम, विवाह बनना चाहता है।

यह अस्वाभाविक भी नहीं है।


लेकिन, उपद्रवपूर्ण तो है ही।

क्योंकि, प्रेम आकाश की मुक्ति है और विवाह पृथ्वी का बंधन है।

प्रेम से कोई तृप्त हो सके, तो ठीक है।

अन्यथा, विवाह से कौन कब तृप्त हुआ है?

लेकिन जीवन से भागना कभी मत।

पलायन आत्मघात है।

जीवन को जीना--उसकी सफलताओं में भी और असफलताओं में भी।

हार और जीत--सभी जरूरी हैं।

फूल और कांटे--सभी पर चल कर ही प्रभु के मंदिर तक पहुंचा जाता है।

और, परमात्मा से कभी भी कुछ मत मांगना।

क्योंकि, मांग और प्रेम में विरोध है।

प्रेम तो, बस, देता ही है।

और जो प्रेम सब दे देता है--स्वयं को भी--वही प्रार्थना बन जाता है।


रजनीश के प्रणाम

20-6-1969(प्रभात)

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