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कौन सच का साथ देगा चल अकेले
इस अँधेरे में दिया बन जल अकेले
हो गयीं बेख़्वाब अब आँखें सभी की
ख़वाब है तू या कि आँसू पल अकेले
सारी दुनिया के लिए किरणें लुटाता
है बना सूरज अगर तो ढल अकेले
चाहता है भूख वो सबकी मिटाना
पक रहा हाँड़ी में जो चावल अकेले
दिल बड़ा है और ये दुनिया भी फिर क्यों
खिल रहा इसमें कोई शतदल अकेले
कर्म किसका धर्म किसका मर्म किसका
डाल पर पंछी कुतरता फल अकेले
ज़िंदगी की मुश्किलों के सामने है
प्यार का सच्चा खरा इक पल अकेले
हो भला जग का ये जिम्मा हर किसी का
पड़ता क्यों माथे पे तेरे बल अकेले
छाँव और पानी लिये जाये सभी तक
आसमां का आख़िरी बादल अकेले
है बची उम्मीद जैसे सूने घर में
खेलता बच्चा कोई चंचल अकेले
बाँट लो जीवन ये जितना बाँट सकते
मिलना होगा मौत से केवल अकेले
हूँ मैं लौ 'अनिमेष' वो जिसको जुगाये
आँधियों के बीच इक आँचल अकेले
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 19 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हर लड़ाई यहां अकेले लड़नी पड़ती है लोग तो जीतने के बाद तालियां बजाने से बातें हैं!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना जितनी तारीफ की जाए कम है