मंगलवार, 5 अक्टूबर 2021

सफ़ेद...* ( 🍁 ग़ज़ल 🍁 ) / *प्रेम रंजन अनिमेष* ⭐ कहते हैं बाल हो गये सन की तरह सफ़ेद मन सा नहीं सियाह कुछ मन की तरह सफ़ेद चुंबन जो सुर्ख़ साँवला राधा अधर पे है कान्हा के मुख पे है वो माखन की तरह सफ़ेद चावल की तरह साफ़ वो मेरे लिए बहुत हो जाऊँ मैं जो उसके धोवन की तरह सफ़ेद कुछ तो पका बना भले कालिख धुआँ लगा होना भी क्या है ख़ाली बरतन की तरह सफ़ेद जब देखता उसे तो वो भी देखता मुझे क्या मैं भी हो गया हूँ दरपन की तरह सफ़ेद उजले ये केश वेश पर उजली किलक किधर जीवन में कुछ कहाँ है बचपन की तरह सफ़ेद पहले पहल की प्रीत वो पहले पहर की जोत आँसूं में धुल के बहते अंजन की तरह सफ़ेद कुहरे की चादरों में वो लिपटी उदास धुन और भोर कोरे क्वाँरे से तन की तरह सफ़ेद उठ कर चला गया यूँ ही होंठों पे होंठ रख क्षण एक पीछे छोड़ हिमकण की तरह सफ़ेद सोचा न था कि ज़िंदगी होगी यूँ जामुनी ले तो गयी थी नेह जामन की तरह सफ़ेद इक साँवली लिपी तपी सी स्वप्न कोठरी सच कोई जिसमें राख ईंधन की तरह सफ़ेद लगता यही कि हूँ कहीं बीमार तो नहीं घर हो अगर धुले बिछावन की तरह सफ़ेद कैसा ये दिन है आज का जिस दिन के दरमियान धूनी जमाये रात जोगन की तरह सफ़ेद रंगों की बात मत करो हर रंग उससे ही काला था जो भी हो गया धन की तरह सफ़ेद जारी किया गया है जो उस श्वेतपत्र में कुछ भी न जन न गण न ही मन की तरह सफ़ेद उस द्वारिका में है कहाँ गोकुल या वृन्दावन घनश्याम आज हो गया घन की तरह सफ़ेद पहली किरण सी टेर जी को चीरती हुई 'अनिमेष' कौन उसके दामन की तरह सफ़ेद 💟 ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*


                               ⭐

कहते हैं  बाल  हो  गये  सन की  तरह  सफ़ेद

मन सा नहीं सियाह कुछ  मन की तरह सफ़ेद



चुंबन   जो  सुर्ख़  साँवला   राधा अधर  पे  है

कान्हा के मुख पे है वो माखन की तरह सफ़ेद



चावल  की  तरह  साफ़  वो   मेरे लिए  बहुत 

हो जाऊँ मैं  जो उसके धोवन की तरह सफ़ेद


कुछ तो पका बना  भले कालिख धुआँ लगा

होना भी क्या है ख़ाली बरतन की तरह सफ़ेद

.


जब  देखता  उसे  तो   वो  भी  देखता  मुझे 

क्या मैं भी हो गया हूँ  दरपन की तरह सफ़ेद



उजले ये केश वेश पर उजली किलक किधर

जीवन में कुछ कहाँ है बचपन की तरह सफ़ेद


पहले पहल की प्रीत वो पहले पहर की जोत

आँसूं में धुल के बहते अंजन की तरह सफ़ेद


कुहरे  की  चादरों में वो  लिपटी  उदास  धुन

और भोर कोरे क्वाँरे से  तन की तरह सफ़ेद


उठ कर  चला गया  यूँ ही  होंठों पे  होंठ रख

क्षण एक पीछे छोड़ हिमकण की तरह सफ़ेद


सोचा  न  था  कि  ज़िंदगी  होगी  यूँ  जामुनी 

ले तो  गयी थी  नेह  जामन  की तरह  सफ़ेद


इक  साँवली  लिपी  तपी  सी   स्वप्न  कोठरी

सच कोई जिसमें  राख ईंधन की तरह सफ़ेद


लगता  यही   कि  हूँ  कहीं   बीमार  तो  नहीं 

घर हो अगर  धुले  बिछावन की तरह  सफ़ेद


कैसा ये दिन है आज का जिस दिन के दरमियान 

धूनी  जमाये   रात   जोगन  की  तरह   सफ़ेद


रंगों  की  बात  मत  करो   हर  रंग  उससे  ही

काला  था जो भी हो गया धन की तरह सफ़ेद


जारी   किया  गया  है   जो   उस  श्वेतपत्र  में 

कुछ भी न जन न गण न ही मन की तरह सफ़ेद


उस द्वारिका में  है कहाँ  गोकुल  या वृन्दावन 

घनश्याम  आज हो गया  घन की तरह सफ़ेद


पहली  किरण  सी  टेर  जी  को  चीरती  हुई

'अनिमेष'  कौन उसके दामन की तरह सफ़ेद

                              💟

                                ✍️ *प्रेम रंजन अनिमेष*

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